Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३३२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १०, २७. सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेसो पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसममपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपवद्धाओ बज्ममाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं छट्ठसुत्तस्स तिण्णि चेव भंगा [३] । कारणं सुगमं ।
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंता च ॥ २७॥
एदस्स सत्तमसुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंता' च वेयणाओ । एवं पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ वज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार यह प्रथम भंग हुआ (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृ. तियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार दो भंग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवको अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार छठे सूत्रके तीन ही भंग हैं (३)। इसका कारण सुगम है।
कथंचित् बध्यमान ( अनेक ), उदीर्ण (अनेक ) और उपशान्त (एक ) वेदना है ॥२७॥
इस सातवें सूत्रके भंगोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी अनेक प्रकतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बांधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्तः कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार प्रथम भंग हुआ (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई
, १ अ-प्राप्रत्योः 'उवसंताओ', ताप्रती 'उसंता [ओ] इति पाठः ।
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