Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०, २२.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[ ३२७ १११११११११११ परिवाडीए ठविय एदेहितो अक्खसंचारेणुप्पाइदतिण्णि वि पत्थारे च ठविय २२०/२२२२२०/ ११२२११११२२१२११११२२२२ एत्थ उवरिमपंती बज्झमाणिया मझिपंती १२१२११२२११२२११२२११२२ उदिण्णा हेहिमपंती उवसंता परूवणा कीरदे । १११११२१२१२१२१२१२१२१२ तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा चज्झपाणिया, ['तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा] तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंता च वेयणा । एवं पढमसुत्तस्स एको चेव भंगो [१] ।
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च ॥ २२ ॥
एदस्स तिसंजोगविदियसुत्तस्स भंगपरूवणा कीरदे। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया
बध्यमान । उदीर्ण उपशान्त । एक एक एक एक एक एक एक | एक एक
अनेक अनेक . अनेक अनेक अनेक अनेक अनेक . परिपाटीसे स्थापित करके इनसे अक्षसंचारके द्वारा उत्पन्न कराये गये तीनों ही प्रस्तारोंको स्थापित करके
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यो
एक
एक अनेक एक | एक | एक |अनेक एक
अनेक अनेक एक | एक
एक एक | एक | अनेक एक | अनेक एक एक । अनेक अनेक
एक । एक | अनेक एक अनेक अनेक अनेक एक अनेक अनेक अनेक
एक अनेक एक । एद | एक अनेक | एक | एक अनेक अनेक अनेक एक | एक अनेक | एक
अनेका अनेक एक अनेक अनेक अनेक
।
यहाँ ऊपरकी पंक्ति बध्यमान, मध्यम पंक्ति उदीर्ण व अधस्तन पंक्ति उपशान्तको प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है--एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, [ उसी विकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण], उसी जीवकी एकप्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार प्रथम सूत्रका एक ही भंग है (१) ।
__ कथंचित् बध्यमान, (एक ), उदीर्ण (एक) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ २२ ॥
तीनोंके संयोगरूप इस द्वितीय सूत्रके भंगोंकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार हैएक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्तः कथश्चित
१कोष्ठकस्थोऽयं पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते।
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