Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, १०, २०] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[ ३२५ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपवद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बावीस भंगा [२२] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओं; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं तेवीस भंगा [२३] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेत्र जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपत्रद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चउवीस भंगा [२४] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं पणुवीस भंगा [२५] ।
अधवा, एदे पणुवीस भंगा एवं वा उप्पादेदव्वा । तं जहा-एक्किस्से एगजीवउदिण्णुच्चारणाए जदि तिण्णिएगजीव उवसंतुच्चारणाओ लभंति तो तिण्णमेगजीवउदिण्णुच्चारणाणं केत्तियाओ उवसंतुच्चारणाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लभंति णव भंगा [९] पुणो एकिस्से णाणाजीवउदिण्णुच्चारणाए जदि चत्तारि जाणाजीव उवसंतुच्चारणाओ लब्भंति नो चदुण्णं णाणाजीवउदिण्णुचारणाणं केत्तियाओ उवसंतुचारणाओ लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए सोलसुच्चारणाओ
जीवों की अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त; वेदनायें हैं। इस प्रकार बाईस भंग हुए ( २२ ) । अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार तेईस भंग हुए ( २३)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वदनायें हैं । इस प्रकार चौबीस भंग हुए (२४)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें है। इस प्रकार पञ्चीस भंग हुए (२५)।
अथवा, इन पञ्चीस भंगोंको इस प्रकारसे उत्पन्न कराना चाहिये। यथा-एक जीवसम्बन्धी उदीर्ण वेदनाकी एक उच्चारणामें यदि तीन एक जीव सम्बन्धी उपशान्त उच्चारणायें पायी जाती हैं तो एक जीव सम्बन्धी तीन उदीर्ण-उच्चारणाओंमें कितनी उपशान्त-उच्चारणायें प्राप्त होंगी. इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर नौ भंग प्राप्त होते हैं (६)। पुनः नाना जीवों सम्बम्धी एक उदीर्ण-उच्चारणामें यदि चार नाना जीवों सम्बन्धी उपशान्त-उच्चारणायें पायी जाती हैं तो नाना जीवों सम्बन्धी चार उदीर्ण-उच्चारणाओंमें कितनी उपशान्त-उच्चारणायें प्राप्त होंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर सोलह उच्चारणायें पायी जाती
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