Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४,२,१०, २०.
३२२ ] अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ, सिया उदिष्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं तिष्णि भंगा [३] | अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिष्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपवद्धा उवसंताओ, सिया उदिष्णाओ च उवसंताओ च वेणाओ । एवं चत्तारि भंगा [ ४ ] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ
समयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव' जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयबद्धाओ वसंताओ, सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ व वेयणाओ' । एवं पंच भंगा [५] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ, सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं छ भंगा [ ६ ] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ असमयबद्धाओ उदिष्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ, सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं सत्त भंगा [७] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिष्णाओ, तस्सेव जीवस अणेयाओ पयडीओ एय समयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवमट्ठ भंगा [ ८ ] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेय
अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार तीन भङ्ग हुए ( ३ ) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चार भंग हुए (४) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार पाँच भङ्ग हुए ( ५ ) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार छह भङ्ग हुए (६) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्तः कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सात भङ्ग हुए (७) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशांत वेदनायें हैं । इस प्रकार आठ भङ्ग हुए ( ८ ) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गईं उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समय में बाँधी गइ उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और
१ श्रान्ताप्रत्योः 'तस्स चेत्र' इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽयम् । श्र श्रापत्योः 'उदिण्णा च वेयणाश्रो' ताप्रतौ 'उदिण्णा च [ उवसंताच ] वेयणा' इति पाठः । ३ - प्रत्यो: "सिया उदिष्णाश्रो च वेयणाश्रो' इति पाठः ।
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