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क्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, २९४.
२६८ ] थोब हुत्तपरूवणाणुववत्तीदों । ण पमाणपरूवणा वि वत्तव्वा, एगेगजीवेण अदीदे काले एगेगड्डाणको सिदकालस्स उवदेसेण विणा वि अणतपमाणत्तसिद्धीदो । उक्कस्सअणुभागबंधवाणा फोसणकालो त्ति तीदे काले एगजीवेण विसमयपाओग्गसव्वाणुभागबंधवाणासु अच्छिदकालो घेत्तव्वो । कथं विसमयपाओग्गसव्वहाणाणं उक्कस्सडाणववएसो ? उच्च दे - उकस्सट्ठाण सहचारेण दोष्णं समयाणं उक्करसववएसो असिसहचरियस असिव्ववएसो व्व । उक्कस्सस्स अणुभागबंधकवसाणङ्काणमुकस्साणुभागबंधज्वसाणट्ठाणं । तत्थ फोसणकालो थोवो कुदो ? एगजीवस्स अइस किले से पाएण पदणाभावादो [२] | ण च एसो तत्थ निरंतर मच्छिदकालो, किं तु अंतरिय अंतरिय तत्थ अच्छिदकाले संकलिदे थोवो ति भणिदं ।
जहणए अणुभागबंधज्झवसाणहाणे फोसणकालो असंखेज्जगुणो ॥ २६४ ॥ [४]
जहण्णाणुभागबंधज्भवसाणड्डाणे ति मणिदे हेडिमचदु 'समयपाओग्गसव्वद्वाणाणं गहणं । 'कथं तेसिं सव्वेसिं जहण्णववएसो ? उच्चदे - चदुष्णं समयाणं जहण्णड्डाण सह
हो जाता है। कारण कि जिसका अस्तित्व न हो उसके अल्पबहुत्व की प्ररूपणा नहीं बनती है । प्रमाणप्ररूपणा भी कहने के अयोग्य हैं, क्योंकि, एक एक जीवके द्वारा अतीत कालमें एक एक स्थानके स्पर्शन किये जानेका काल अनन्त है, इस प्रकार उपदेशके बिना भी उसका अनन्त प्रमाण सिद्ध है । उत्कृष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानस्पर्शन काल से अतीत कालमें एक जीवके द्वारा दो समय योग्य सब अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानों में रहनेका काल ग्रहण करना चाहिये ।
शंका- दो समय योग्य सब स्थानोंकी उत्कृष्ट स्थान संज्ञा कैसे घटित होती है ?
समाधान - इस शंकाका उत्तर कहते हैं । उत्कृष्ट स्थानके साथ रहनेके कारण दो समयोंकी उत्कृष्ट संज्ञा है, जैसे असि युक्त पुरुषकी असि यह संज्ञा होती है ।
उत्कृष्टका अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान उत्कृष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान, इस प्रकार यहाँ पष्ठीतत्पुरुषसमास है । उसमें स्पर्शनका काल स्तोक है । इसका कारण यह है कि एक जीवका प्रायः अतिशय संक्लेशमें पतन नहीं होता है [२] । और यह वहाँ निरन्तर रहनेका काल नहीं है, किन्तु बीच बीचमें अन्तर करके वहाँ रहनेके कालका संकलन करनेपर उसे स्तोक ऐसा कहा गया है ।
संख्यातगुणा
उससे जघन्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान में स्पर्शन काल है ॥ २९४ ॥ [४]
जघन्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान ऐसा कहनेपर नीचे के चार समय योग्य सब स्थानोंका ग्रहण किया गया है ।
शंका- उन सबकी जघन्य संज्ञा कैसे है ?
समाधान - जघन्य स्थानके साथ रहने के कारण चार समयोंकी जघन्य संज्ञा कही जाती १ अप्रतौ 'समय' इति पाठः । २ - श्राप्रत्योः 'कटं', ताम्रतौ 'कडं ( वं )' इति पाठः ।
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