Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
.
४, २, १०, १२.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
। ३१३ ण लभंति, जीवेहि विय हियरणत्तप्पसंगादो ।
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च ॥ १२॥
वेयणा ति अणुवट्टदे । एदस्स बज्झमाण-उदिण्णाणं दुसंजोगचउत्थसुत्तस्स अत्थो वुञ्चदे । तं जहा-एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एगसमयपबद्धाओ चज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिपणाओ सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च वेयणाओ । एवं चउत्थसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च वेयणा ओ। एसो विदियभंगो [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओपयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणे ओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च वेयणाओ। एवं चउत्थसुत्तस्स तिण्णि भंगा [३] । संपहि अज्झमाणउदिण्णाणं एयजीवमस्सिदण तिण्णि चेव भंगा होति, अहिया ण उप्पज्जंति, बज्झमाण-उदिण्णाणं वियहिअरणावत्तीदो। संपहि एदस्सेव दुसंजोगचउत्थसुत्तस्स बज्झमाण'-उदिण्णाणं णाणाजीवे अस्सिदूण सेसभंगे वत्तइस्सामो। तं जहा-अणेयाणं जीवाणं एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च जीवोंके साथ व्यभिचारका प्रसंग आता है।
कथंचित् वध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं ॥ १२ ॥
'वेदना' इसकी अनुवृत्ति है । अब बध्यमान और उदीर्ण सम्बन्धी द्विसंयोगवाले इस चतुर्थ सूत्र का अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार चतुर्थ सूत्रका प्रथम भंग हुआ (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान वेदनायें, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गईं उदीर्ण वेदनायें, कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं। यह द्वितीय भंग हुआ (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान वेदनायें, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण वेदनायें कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनाएं हैं। इस प्रकार चतुर्थ सूत्रके तीन भंग होते हैं ( ३ )। अब बध्यमान और उदीर्ण वेदनाओंके एक जीवका आश्रय करके तीन ही भंग होते हैं, अधिक नहीं उत्पन्न होते हैं, क्योंकि, बध्यमान और उदीर्णके व्यभिचारकी आपत्ति आती है। ___अब इस। द्विसंयोगवाले चतुर्थ सूत्रकी बध्यमान और उदीर्ण वेदनाओंके नाना जीवोंक। आश्रय करके शेष भंगोंको कहते हैं। यथा-अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण
१ श्र-त्राप्रत्योः 'सुत्तबज्झमाण' इति पाठः। । छ, १२-४० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org