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४, २, १०, १०. ]
derमहाहियारे वेयणवेयण विहाणं
[ ३११
सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे वज्झमाण - उदिष्णाणं दुसंजोगमुत्तपत्थारं विय | पुणो
११२२ १२१२
जीव-पय डि
११२२
बज्झमाणवेयणाए जीव - पयडि - समयपत्थारं १२१२ पुणो उदिष्णाए
११११
११११२२२२
११२२११२२ पुणो पच्छा बुच्चदे । तं जहा
१२१२१२१२
समयाणं एग- बहुवयणपत्थारं च ठविय एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया तस्सेव जीवस्स एयपयडी समयबद्धा उदिण्णा सिया बज्झमाणिया च उदिष्णा च वेयणा । एवं दुसंजोग - पढमसुत्तस्स एगा चैव उच्चारणा ।
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च ॥ १० ॥
समझना चाहिये । इस सूत्र के अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान और उदीर्ण वेदना के द्विसंयोग
सूत्रप्रस्तारको
बध्यमान एक एक अनेक अनेक उदीर्ण एक अनेक एक एक
स्थापित करके पश्चात् बध्यमान वेदना
जीव एक एक अनेक अनेक
सम्बन्धी जीव, प्रकृति व समय इनके प्रस्तारको, प्रकृति एक अनेक एक अनेक तथा उदीर्ण
समय एक एक एक एक
वेदना सम्बन्धी जीव, प्रकृति और समय इनके एक व बहुवचनोंके प्रस्तारको भी जीव एक एक एक एक अनेक अनेक अनेक अनेक
स्थापित प्रकृति एक एक अनेक अनेक एक एक अनेक अनेक करके पुनः पश्चात् प्ररूपसमय एक अनेक एक अनेक एक अनेक एक अनेक
की जाती है । वह इस प्रकार है - एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान और उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उदीर्ण, यह कथञ्चित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है । इस प्रकार द्विसंयोगरूप प्रथम सूत्रकी एक ही उच्चारणा है ।
कथंचित् बध्यमान ( एक ) और उदीर्ण ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ १० ॥
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