Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४,२, १०, १५. पयडीओ एयसमयपवद्धाओ उवसंताओ, सिया बज्झमाणिया च उवसंताओ च वेयणाओ एवं दो भंगा [२] । अधवा एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं तिण्णि भंगा [३] । एवं विदियसुत्तस्स तिण्णि चेव भंगा लभंति, ण सेसा; णिरुद्धगजोवत्तादो।
सिया बज्झमाणियाओ च उवसंता च ॥ १५ ॥
एदस्म तदियसुत्तस्स भंगपरूवणा कीरदे। तं जहा–एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स एयपयडी एयसमयपबद्धा उवसंता, सिया बज्झमाणियाओ च उवसंता च वेयणा । एवं तदियसुत्तस्स एगो चेव भंगो [१] । सेसभंगा ण लब्भंति । कुदो ? णिरूद्धगजीवत्तादो।
सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च ॥ १६ ॥
एदस्स चउत्थसुत्तस्स भंगपरूवणा कीरदे । तं जहा–एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एसो चउत्थसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्त अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स अणयाओ पयडीओ एयसमयपवद्धाओ उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चउत्थसुत्तस्स समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भङ्ग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन भङ्ग हुए (३) । इस प्रकार द्वितीय सूत्रके तीन ही भङ्ग पाये जाते हैं; शेष नहीं पाये जाते; क्योंकि, यहाँ एक जीवकी विवक्षा है।।
कथंचित बध्यमान (अनेक) और उपशान्त ( एक ) वेदना है ॥१५॥
इस तृतीय सूत्रके भोंकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार तृतीय सूत्रका एक ही भङ्ग है (१), शेष भङ्ग नहीं पाये जाते हैं, क्योंकि, एक जीवकी विवक्षा है।
कथंचित् बध्यमान ( अनेक ) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥१६॥
इस चतुर्थ सूत्रके भङ्गोंकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। यह चतुर्थ सूत्रका प्रथम भङ्ग है (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चतुर्थ
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