Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २,१०, १७. पबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवमट्ठ भंगा [८] । अधवा, अणे. याणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं णव भंगा [९] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं दस भंगा [१०] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चे जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया वज्झमाणियाओ च' उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चउत्थसुत्तस्स एक्कारस भंगा [११]। एवं बज्झमाण-उवसंताणं दुसंजोगसुत्तपरूवणा समत्ता। संपहि उदिण्ण-उवसंताणं दुसंजोगजणिदवेयणावियप्पपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि--
सिया उदिण्णा च उवसंता च ॥ १७ ॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणाए कीरमाणाए पुव्वं ताव उदिण्ण-उवसंताणं दुसंजोगसुत्तपत्थारं ठविय ११९२ पुणो उदिण्णस्स जीव-पयडि-समयाणमेग-बहुवयणाणं पत्थारं
प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त. कथंचित बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार आठ भङ्ग हुए (८)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार नौ भङ्ग हुए (६)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दस भङ्ग हुए (१०)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चतुर्थ सूत्रके ग्यारह भङ्ग हुए (११)। इस प्रकार बध्यमान और उपशान्त वेदनासम्बन्धी द्विसंयोगवाले सूत्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई। अब उदीर्ण और उपशान्त प्रकृतियोंके द्विसंयोगसे उत्पन्न वेदनाविकल्पोंकी प्ररूपणा करनेके लिये अगला सूत्र कहते हैं
कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ १७ ॥ इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय पहिले उदीर्ण उपशान्त वेदनाके द्विसंयोग सूत्रके
| उदीर्ण एक | एक अनेक अनेक प्रस्तारको स्थापित | उप
करके फिर उदीर्ण वेदना सम्बन्धी जीव.
१अ-अाप्रत्योः 'चेव' इति पाठः। २ अ-आप्रत्योः 'परूवणा' इति पाठः। ३ अ-आप्रत्योः -मेगवक्यणार्ण' इति पाठः।
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