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३१२ ]
छखंडागमे वेयणाखंड
[ ४,२, १०, ११
एत्थ वेणा त्ति अणुवट्टदे | तेण वेयणासदो असंतो वि अज्काहारेयव्वो सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च वेयणा त्ति । संपहि एदस्स अत्थपरूवणा करदे | तं जहा - एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स एयt पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च वेणाओ । एवं दुसंजोगविदियसुत्तस्स पढमुच्चारणा [१] अधवा, एयस्स जीवस्स एया पडी एयसमयबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपद्धाओ उदिण्णाओ सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च वेयणा । दो भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ सिया बज्झमाणिया च उदिष्णाओ च वेयणा । एवं तिणि भंगा [ ३ ] । पुणो उदिण्णाए विदियसुत्तस्स सेसबहुवयणभंगा ण लब्भंति । कुदो १ बज्झमाण- उदिष्णाणमाधारभूद एगजीवभावादो |
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च ॥ ११ ॥
वेणाति अणुव । एदस्स सुत्तस्स भंगा वुच्चति । तं जहा – एयरस जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणिओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च वेयणाओ । एवं तदियसुत्तस्स एगो चैव भंगो [१] । पुणो बज्झमाण- उदिण्णाणं दुसंजोगतदियसुत्तस्स से सभंगा
यहाँ 'वेदना' की अनुवृत्ति ली जाती है। इसलिये वेदना शब्दके न होते हुए भी उसका अध्याहार करना चाहिये - कथचित बध्यमान और उदीर्ण वेदना यें हैं। अब इस सूत्र के अर्थकी प्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार है- एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में नाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण; इस प्रकार कथञ्चित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं । इस प्रकार द्विसंयोगरूप द्वितीय सूत्रकी प्रथम उच्चारणा हुई ( १ ) । अथवा, एक जीव की एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गईं उदीर्ण, कथञ्चित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं । ये दो भंग हुए ( २ ) । अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, कथञ्चित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन भंग हुए ( ३ ) । पुनः उदीर्ण वेदना सम्बन्धी द्वितीय सूत्रके शेष बहुवचन भंग नहीं पाये जाते, क्योंकि, बध्यमान और उदीर्ण वेदना के आधारभूत एक जीवका प्रभाव है ।
कथंचित् बध्यमान वेदनायें और उदीर्ण वेदना है ॥ ११ ॥
'वेदना' इसकी अनुवृत्ति है । इस सूत्र के भंग कहते हैं। यथा- एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गईं बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान वेदनायें और उदीर्ण वेदना है । इस प्रकार तृतीय सूत्रका एक ही भंग होता है ( १ ) पुनः बध्यमान और उदीर्ण सम्बन्धी द्विसंयोगवाले तृतीय सूत्रके शेष भंग नहीं पाये जाते, क्योंकि
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