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४,२,८, ११] वेयणमहाहियारे वेयणपच्चयविहाणं
[२८७ सरावादरओ दीसंति ति चे १ ण, एत्थ वि कमभाविकोधादीहिंतो उप्पजमाणणाणावरणीयस्स दव्वादिभेदेण भेदुवलंमादो। णाणावरणीयसमाणत्तणेण तदेकं चे? ण, बहूहितो समुप्पजमाणघडाणं पि घडभावेण एयत्तवलंभादो। होदु णाम णाणावरणीयस्स एदे पच्चया णइगम-ववहारणएसु, ण संगहणए; तत्थ उपसंहारिदासेसकजकारणकलावे कारणभेदाणुववत्तीदो ? ण, संगहम्मि पहाणीकयम्मि संगहिदासेसविसेसम्हि कज-कारणमेदुववत्तीदो। (एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥ ११ ॥
जहा णाणावरणीयस्स पचयपरूवणा कदा तहा सेससत्तणं पच्चयपरूवणा कायव्वा, विसेसाभावादो। मिच्छत्तासंजम-कसाय-जोगपञ्चएहि परिणयजीवेण सह एगोगाहणाए द्विदकम्मइयवग्गणाए पोग्गलक्खंधा एयसरूवा कधं जीवसंबंधेण अट्ठभेदमाढ उकते १ ण, मिच्छत्तासंजम-कसाय-जोगपञ्चया'वटुंभवलेण समुप्पण्णट्ठसत्तिसंजुत्तजीवसंबंधेण कम्महयपोग्गलक्खंधाणं अट्ठकम्मायारेण परिणमणं पडि विरोहाभावादो। व शराव आदि भिन्न भिन्न कार्य देखे जाते हैं तो इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि यहाँ भी क्रमभावी क्रोधादिकोंसे उपन्न होनेवाले ज्ञानावरणीय कर्मका द्रव्यादिकके भेदसे भेद पाया जाता है। . शंका-ज्ञानावरणीयत्वकी समानता होनेसे वह ( अनेक भेद रूप होकर भी) एक ही है ?
समाधान-इसके उत्तरमें कहते हैं कि इस प्रकार यहाँ भी बहुतोंके द्वारा उत्पन्न किये जानेवाले घटोंके भी घटत्व रूपसे अभेद पाया जाता है।
शंका- नैगम और व्यवहार नयको अपेक्षा ये भले ही ज्ञानावरणीयके प्रत्यय हों, परन्तु संग्रह नयकी अपेक्षा वे उसके प्रत्यय नहीं हो सकते; क्योंकि, उसमें समस्त कार्य-कारण समूहका उपसंहार होनेसे कारणभेद बन नहीं सकता ? .
समाधान - नहीं, क्योंकि, संग्रह नयको प्रधान करनेपर समस्त विशेषोंका संग्रह होते हुए भी कार्य कारणभेद बन जाता है।
इसी प्रकार शेष सात कर्मों के प्रत्ययोंकी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥११॥
जैसे ज्ञानावरणीय कर्मके प्रत्ययोंकी प्ररूपणा की गई है वैसे ही शेष सात कर्मों के भी प्रत्ययोंकी प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है।
शंका-मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग प्रत्ययोंसे परिणत जीवके साथ एक अवगा. हनामें स्थित कामण वगणाके पौद्गलिक स्कन्ध एक स्वरूप होते हुए जीवके सम्बन्धसे कैसे आठ भेदको प्राप्त होते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योगरूप प्रत्ययोंके आश्रयसे उत्पन्न हुई आठ शक्तियोंसे संयुक्त जीवके सम्बन्धसे कार्मण पुद्गल-स्कन्धोंका आठ कर्मों के भाकारसे परिणमन होने में कोई विरोध नहीं है।
१ प्रतिषु 'पजाया-' इति पाठः ।
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