Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४,२,८,१६.] वेयणमहाहियारे वेयणपञ्चयाविहाणे
एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥१६॥ सुगम ।
एवं वेयणपचयविहाणे ति समत्तमणिगोगद्दारं ।
इसी प्रकार शेष सात कर्मों के विषयमें भी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ १६ ॥ यह सूत्र सुगम है
विशेषार्थ-यहां सात नयों की अपेक्षा कौन वेदना किस प्रत्ययसे होती है यह बतलाया गया है । नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन द्रव्यार्थिक नय हैं इसलिए इनकी अपेक्षा ज्ञानावरण आदिके बन्ध प्राणातिपात आदि जितने भी कारण होते हैं अर्थात् जिनके सद्भावमें ज्ञानावरणादि कर्मोका बन्ध होता है वे सब प्रत्यय कहे जाते हैं । ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा प्रकृति और प्रदेशबन्ध योगप्रत्यय और स्थिति व अनुभागबन्ध कषाय प्रत्यय होता है। कारण कि बन्धके ये दो ही साक्षात् प्रत्यय हैं । यद्यपि ऋजुसूत्रनय कार्य-कारणभावको ग्रहण नहीं करता परन्तु अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयमें यह सब बन जाता है इसलिए उक्त प्रकारसे कथन किया है।
इस प्रकार वेदनप्रत्ययविधान अनुयोग द्वार समाप्त हुआ।
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