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४, २,६, १५.] वेयणमहाहियारे वेयणसामित्तविहाणं
[ ३०१ णलक्खणविरोहदंसणादो। ण च एगत्ताविसिहं वत्थु अत्थि जेण अणेगत्तस्स' तदाहारो होज्ज । एक्कम्हि खंभम्मि मूलग्ग-मज्झमेएण अणेयत्तं दिस्सदि त्ति भणिदेण' तत्थ एयत्तं मोत्तण अणेयत्तस्स अणुवलंभादो। ण ताव थंभगयमणेयत्तं, तत्थ एयत्तवलंभादो । ण मूलगयमग्गगयं मझगयं वा, तत्थ वि एयत्तं मोत्तण अणेयत्ताणुवलंभादो । ण तिण्णमेगेगवत्थूणं समूहो अणेयत्तस्स आहारो, तव्वदिरेगेण तस्समूहाणुवलंभादो। तम्हा णत्थि बहुत्तं । तेणेव कारणेण ण चेत्थ बहुवयणं पि । तम्हा सदुजुसुदाणं णाणावरणीयवेयणा जीवस्से त्ति भणिदं ।
एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥ १५ ॥
जहा णाणावरणीयस्स परूविदं तहा सत्तण्णं कम्माणं वेयणसामित्तं परूवेदव्वं, विसेसाभावादो।
एवं वेयणसामित्तविहाणं समत्तमणियोगदारं ।
व उष्णके समान सहानवस्थान रूप विरोध देखा जाता है। इसके अतिरिक्त एकत्वसे रहित वस्तु है भी नहीं जिससे कि वह अनेकत्वका आधार हो सके ।
शंका - एक खम्भेमें मूल, अन एवं मध्यके भेदसे अनेकता देखी जाती है ?
समाधान-ऐसी आशंका होनेपर उत्तर देते हैं कि 'नहीं', क्योंकि, उसमें एकत्वको छोड़कर अनेकत्व पाया नहीं जाता। कारण कि स्तम्भमें तो अनेकत्वकी सम्भावना है नहीं, क्योंकि उसमें एकता पायी जाती है। मूलगत, अग्रगत अथवा मध्यगत अनेकता भी सम्भव नहीं है. क्योंकि, उनमें भी एकत्वको छोड़कर अनेकता नहीं पायी जाती। यदि कहा जाय कि तीन एक एक वस्तुओंका समूह अनेकताका आधार है, सोयह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि, उससे भिन्न उनका समूह पाया नहीं जाता। इस कारण इन नयों की अपेक्षा बहुत्व सम्भव नहीं है। इसीलिये यहाँ बहुवचन भी नहीं है। अतएव शब्द और ऋजुसूत्र नयोंकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी वेदना जीवके होती है, ऐसा कहा गया है। . इसी प्रकार इन दोनों नयोंकी अपेक्षा शेष सात कर्मोंकी वेदनाके स्वामित्वका कथन करना चाहिये ॥ १५ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी वेदनाके स्वामित्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार शेष सात कर्मोंकी वेदनाके स्वामित्वकी प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है।
___ इस प्रकार वेदनस्वामित्वविधान अनुयोग द्वार समाप्त हुआ।
१ प्रतिषु 'अणोगंतस्स' इति पाठः। २ ताप्रती 'भीणदे' इति पाठः। ३ अ-ताप्रत्योः ण च अत्थि' इति पाठः।
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