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४, २, १०, ४. ] वेणयमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं
[३०५ तं जहा-एयजीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा सिया बज्झमाणिया वेयणा । सुतेण अणुवइट्ठोणं जीव-पयडि-समयाणं कधमेत्थ णिद्देसो कीरदे ? पयडी ताव सुत्तद्दिट्ठा चेव, णाणावरणीयवेयणा इदि सुत्ते भणिदत्तादो। समओ वि सुत्तणिद्दिट्टो चेव, बज्झमाणिया इदि वट्टमाणणिद्देसादो । तहा जीवो वि सुत्तद्दिट्ठो, मिच्छत्तासंजम-कसाय-जोगपच्चयपरिणदजीवेण विणा बंधो णस्थि ति पच्चयविहाणे परूविदत्तादो। तदो जीवपयडि-समया सुत्तणिवद्धा चेवे ति दया । कालस्त बहुवयणमेत्थ किण्ण इच्छिज्जदे ? ण, बंधस्स विदियसमए उवसंतभावमावज्जमाणस्स एगसमयं मोत्तूण बहूर्ण समयाणमणुवलंभादो। एत्थ जीव-पयडि-समय-एगवयण-बहुवयणाणमेसो पत्थारो १२१२ । एत्थ
|११११ एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया त्ति एदं पढमपत्थारालावमस्सिदुण सुत्तमिदमवद्विदं ।
सिया उदिण्णा वेयणा ॥४॥ सूत्रका आलाप कहते हैं। वह इस प्रकार है-एक समयमें बाँधी गई एक जीवकी एक प्रकृति कथश्चित् बध्यमान वेदना है।
शंका-सूत्रमें अनिर्दिष्ट जीव, प्रकृति और समय, इनका निर्देश यहाँ कैसे किया जारहा है ? समाधान-प्रकृतिका निर्देश सूत्र में किया ही गया है, क्योंकि, 'ज्ञानावरणीय वेदना' ऐसा
| गया है। समय भी सूत्रनिर्दिष्ट ही है, क्योंकि, 'बध्यमान' इस प्रकारसे वर्तमान कालका निर्देश किया गया है। जीव भी सूत्रोद्दिष्ट ही है, क्योंकि, मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग प्रत्ययसे परिणत जीवके बिना बन्ध नहीं हो सकता, ऐसी प्रत्ययविधानमें प्ररूपणा की जा चुकी है । इसलिये जीव, प्रकृति और समय, ये सूत्रनिबद्ध ही हैं, ऐसा समझना चाहिये ।
शंका-यहाँ कालको बहुवचन क्यों नहीं स्वीकार करते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, बन्धके द्वितीय समयमें उपशमभावको प्राप्त होनेवाले कर्मबन्धके एक समयको छोड़कर बहुत समय पाये नहीं जाते। यहाँ जीव, प्रकृति और समयके एकवचन व बहुवचनका यह प्रस्तार है
जीव | एक एक अनेक अनेक प्रकृति एक अनेक एक अनेक
मय एक एक एक एक यहाँ एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान है, इस प्रकार इस प्रथम प्रस्तारके आलापका आश्रय करके यह सूत्र अवस्थित है। __ ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् उदीर्ण वेदना है ॥४॥......
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