Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३०८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, १०,७. चारणं मोत्तण सेसाओ तिणि उच्चारणाओ होति । ताओ भणिस्सामो-एगस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एगसमयपबद्धाओ सिया बज्झमाणियाओ वेयणाओ । एत्थ एगा' उच्चारणसलागा लब्भदि [१] । अणेगेहि जीवेहि एया पयडी एगसमयपवद्धा सिया बज्झमाणियाओ वेयणाओ। एवं बेउच्चारणसलागा [२] । कथं जीवबहुत्तेण वेयणाबहुत्तं ? ण, एकिस्से वेयणाए जीवभेदेण भेदमुवगयाए बहुत्तविरोहाभावादो। अधवा, अणेयाणं जीवाणं अणेयाओ पयडीओ एगसमयपबद्धाओ सिया बज्झमाणियाओ वेयणाओ। एवं तिण्णि उच्चारणसलागाओ [३] । एवं बज्झमाणियाए बहुवयणसुत्तालावो समत्तो।
सिया उदिण्णाओ वेयणाओ॥७॥
एदस्स उदिण्णबहुवयणसुत्तस्स आलावे' भण्णमाणे जीव-पयडि-समयाणं एगबहुवयणाणि ठविय तेसिमक्खसंचारअणिदपत्थारं च ठविय तत्थ एगवयणालावं पुव्वं परूविदं मोत्तूण सेससत्तालावे भणिस्सामो। तं जहा–एगस्स जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा सिया उदिपणाओ वेयणाओ। एत्थ जदि वि एगेण जीवेण एया
चेव पयडी उदए छुद्धा तो वि तिस्से बहुत्तं होदि, अणेगेसु समएसु पबद्धत्तादो । एत्थ प्रकृतियोंमें वहाँ बहुत्व पाया जाता है। नैगम नय बध्यमान वेदनाके बहुत्वको स्वीकार करता है। इसलिये इसके प्रथम उच्चारणको छोड़कर शेष तीन उच्चारणायें होती है। उनके
उनको कहते हैं-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई कथञ्चित् बध्यमान वेदनायें हैं। यहाँ एक उच्चारण शलाका पायी जाती है (१)। अनेक जीवोंके द्वारा एक समयमें बाँधी गई एक प्रकृति कथश्चित् बध्यमान वेदनायें हैं। इस प्रकार दो उच्चारणशलाकायें हुई (२)।
शंका-जीवोंके बहुत्वसे वेदनाका बहुत्व कैसे सम्भव है ? ___ समाधान नहीं, क्योंकि, जीवोंके भेदसे भेदको प्राप्त हुई एक वेदनाके बहुत होने में कोई विरोध नहीं है।
__ अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई कथञ्चित् बध्यमान वेदनाय हैं। इस प्रकार तीन उच्चारण शलाकायें हुई (३)। इस प्रकार बध्यमानके बहुवचन सम्बन्धी सूत्रका आलाप समाप्त हुआ।
कथंचित् उदीर्ण वेदनायें हैं ॥ ७॥
इस उदीर्ण वेदनाओं सम्बन्धी बहुवचन सूत्रके अलापोंको प्ररूपणा करते समय जीव, प्रकृति एवं समयके एक व बहुवचनों को स्थापित कर तथा उनके अक्षसञ्चारसे उत्पन्न प्रस्तारको भी स्थापित करके उनमेंसे पूर्वमें कहे गये एकवचन आलापको छोड़कर शेष सात आलापोंको कहते हैं। यथा-एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई कथञ्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। यद्यपि यहाँ एक जीवके द्वारा एक ही प्रकृति उदयमें निक्षिप्त की गई है तो भी वह बहुत होती है, क्योंकि,
१ ताप्रतौ 'एगा' इत्येतत्पदं नास्ति । २ अप्रतौ 'अभावे' इति पाठः ।
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