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(वेयणवेयणविहाणाणियोगद्दारं ) वेयणवेयणविहाणे त्ति ॥ १॥
एदमहियारसंभालणसुत्तं । किमट्टमहियारो संभालिज्जदे ? ण, अण्णहा परूवणाए फलाभावप्पसंगादो । का वेयणा ? वेद्यते वेदिष्यत इति वेदनाशब्दसिद्धः। अहविहकम्मपोग्गलक्खंधो वेयणा । णोकम्मपोग्गला वि वेदिज्जति ति तेसिं वेयणासण्णा किण्ण इच्छिज्जदे ? ण, अट्ठविहकम्मपरूवणाए परूविज्जमाणाए णोकम्मपरूवणाए संभवाभावादो। अनुभवनं वेदना, वेदनायाः वेदना वेदनावेदना, अष्टकर्मपुद्गलस्कन्धानुभव इत्यर्थः । विधीयते क्रियते प्ररूप्यत इति विधानम्, वेदनावेदनायाः विधानं वेदनावेदनाविधानम् । तत्र प्ररूपणा क्रियत इति यदुक्तं भवति ।
सव्वं पि कम्म पयडि त्ति कटु णेगमणयस्स ॥ २॥
वेदनवेदनविधान अनुयोगद्वार अधिकार प्राप्त है ॥ १ ॥ यह सूत्र अधिकारका स्मरण कराता है। शंका- अधिकारका स्मरण किसलिये कराया जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, उसके विना प्ररूपणाके निष्फल होनेका प्रसंग आता है । शंका-वेदना किसे कहते हैं ?
समाधान-'वेद्यते वेदिष्यत इति वेदना' अर्थात् जिसका वर्तमानमें अनुभव किया जाता है, या भविष्यमें किया जावेगा वह वेदना है, इस निरुक्तिके अनुसार आठ प्रकार के कर्म-पुद्गलस्कन्धको वेदना कहा गया है।
शंका-नोकर्म भी तो अनुभवके विषय होते हैं, फिर उनकी बेदना संज्ञा क्यों अभीष्ट नहीं है?
समाधान नहीं, क्योंकि; आठ प्रकारके कर्मकी प्ररूपणाका निरूपण करते समय नोकर्मप्ररूपणाकी सम्भावना ही नहीं है।
__ अनुभवन करनेका नाम वेदना है। वेदनाकी वेदना वेदनावेदना है, अर्थात् आठ प्रकारके कर्मपुद्गलस्कन्धों के अनुभव करनेका नाम वेदनावे विधानम' अर्थात् जो किया जाय या जिसकी प्ररूपणा की जाय वह विधान है, वेदनावेदनाका विधान वेदनादेदनाविधान, इस प्रकार यहाँ तत्पुरुष समास है। उसके विषय में प्ररूपणा की जाती है, यह उसका अभिप्राय है।
नैगम नयकी अपेक्षा सभी कर्मको प्रकृति मानकर यह प्ररूपपणा की जा रही है ॥२॥
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