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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, ७. जीवस्स वि वेयणा भवदि, तेण विणा पोंग्गलादो चेव तदणुवलंभादो। णोजीवस्स वि भवदि, णोकम्मपोग्गलक्खंधेहि विणा जीवादो चेव तदणुवलंभादो। एवंविहणए जीवस्स च णोजीवस्स च णाणावरणीयवेयणा होदि । (सिया जीवस्स च णोजीवाणं च ॥७॥)
जीवस्स एयत्तं जदा जादिदुवारेण गहिदं तदा णोजीवबहुतं देस-संठाण-सरीरारंभयपोग्गलभेदेण घेत्तव्वं । जदा जादीए विणा 'जीववत्तिगयमेगत्तमप्पियं होदि तदा कम्मइयक्खंधाणमणंताणमणेगसंठाणाण मणेगदेसट्टियाणमेगजीवविसयाणं भेदेण णोजीवबहुत्तं वत्तव्वं । एवंविहाए अप्पणाए जीवस्स च णोजीवाणं व वेयणा होदि । (सिया जीवाणं च णोजीवस्स च ॥८॥)
जदा जादिदुवारेण णोजीवस्स एयत्तं विवक्खियं तदा काइंदिय-संठाण-देसादिभेदेण जीवाणं बहुत्तं घेत्तव्यं । जदा" णोजीवस्स वत्तिदुवारेण एयत्तमप्पियं तदा पदेसादिभेदेण जीवबहुत्तं घेत्तव्वं । एवंविहविवक्खाए सिया जीवाणं च णोजीवस्स च बेयणा होदि ।
जीवके भी वेदना होती है, क्योंकि, जीवके विना एकमात्र पुद्गलसे हो वह नहीं पायी जाती। उक्त वेदना नोजीवके भी होती है, क्योंकि, नोकर्मरूप पुद्गलस्कन्धोंके विना एक मात्र जीवसे ही वह नहीं पायी जाती है। इस प्रकारके नयमें ज्ञानावरणीयको वेदना जीवके भी होती है और नोजीवके भी होती है।।
वह कथंचित् जीवके और नोजीवोंके होती है । ७॥
जब जातिकी अपेक्षासे जीवकी एकता ग्रहण की गई हो तब देश, संस्थान और शरीरके आरम्भक पुद्गलस्कन्धोंके भेदसे नोजीवोंके बहुत्वको ग्रहण करना चाहिये। जब जातिके विना जीवव्यक्तिगत एकताकी प्रधानता होती है तब अनेक संस्थानसे युक्त व अनेक देशों में स्थित एक जीव विषयक अनन्तानन्त कार्मण स्कन्धोंके भेदसे नोजीवोंके बहुत्वको कहना चाहिये। इस प्रकारकी विवक्षासे जीवके और नोजीवोंके भी उक्त वेदना होती है।
वह कथंचित् जीवोंके और नोजीवके होती है ॥८॥
जब जाति द्वारा नोजीवकी एकता विवक्षित हो तब काय, इन्द्रिय, संस्थान और देश आदिके भेदसे जीवोंके बहुत्वको ग्रहण करना चाहिये। जब व्यक्ति द्वारा नोजीवकी एकता विवक्षित हो तब प्रदेशादिके भेदसे जीवोंके बहुत्वको ग्रहण करना चाहिये । इस प्रकारकी विवक्षासे कथंञ्चित् जीवोंके और नोजीवके भी वेदना होती है।
१ ताप्रतौ 'जीवड्डि (त्ति) गय' इति पाठः। २ अ-श्रापत्योः 'संठाण', ताप्रती 'संठा [णा] ण' इति पाठः। ३ अ-आप्रत्योः 'जधा' इति पाठः। ४ अ-आप्रत्योः 'तथा' इति पाठः । ५ अ-आप्रत्योः 'जथा' इति पाठः ।
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