Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, २, ७, ३११. ]
वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया
नव्वदे जहा चदुसमयपाओग्गट्ठाणेसु परिभवंति जीवा बहुगा ति । कंदयस्स जीवा तत्तिया चेव ॥ ३०६ ॥ कुदो ? दोष्णं कालादो भेदाभावादो । जवमज्झस्स जीवा असंखेज्जगुणा ॥३०७॥ कुदो ? कंदयकालादो जवमज्भकालस्स असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो । कंदयस्स उवरिं जीवा असंखेज्जगुणा ॥ ३०८ ॥
कुदो ? जवमज्झट्ठाणेहिंतो तिसमइयविसमइयपाओग्गट्ठाणाणमसंखेज्जगुणत्तु
वलंभादो |
जवमज्झस्स उवरि कंदयस्स हेट्टिमदो जीवा असंखेजुगुणा ॥ ३०६ ॥ दो संखेज्जगुणफोसणकालत्तादो । कंदयस्स उवरि जवमज्झस्स हेट्ठिमदो जवमज्झस्स हेट्ठिमदो जीवा तत्तिया
चेव ॥ ३१० ॥
कुदो ? फोसणकालट्ठाणसंखाहि समाणत्तादो' | जवमज्झस्स उवरिं जावा विसेसाहिया ॥ ३११ ॥ सुगमं ।
जाता है कि चार समय योग्य स्थानोंमें जीव बहुत भ्रमण करते हैं । काण्डकके जीव उतने ही हैं ॥ ३०६ ॥
कारण कि दोनोंमें कालकी अपेक्षा कोई भेद नहीं हैं ।
उनसे यवमध्य जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ३०७ ॥
[ २.७३
कारण कि काण्डककालकी अपेक्षा यवमध्यकाल असंख्यातगुणा पाया जाता है ।
उनसे काण्डकके ऊपर जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ३०८ ॥
कारण कि यवमध्यके स्थानों की अपेक्षा तीन समय व दो समय योग्य स्थान असंख्यातगुणे पाये जाते हैं।
उनसे यवमध्यके ऊपर और काण्डकके नीचे जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ३०९ ॥ कारण कि यहाँ असंख्यातगुणा स्पर्शनकाल पाया जाता है ।
कडक ऊपर और यवमध्यके नीचे जीव उतने ही हैं ।। ३१० ॥ कारण कि यहाँ स्पर्शनकाल और स्थानसंख्या की अपेक्षा समानता है । उनसे यवमध्यके ऊपर जीव विशेष अधिक हैं ।। ३११ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
१ मप्रतिपाठोऽयम् । श्रश्रा-ताप्रतिषु 'पमाणत्तादो' इति पाठः ।
छ. १२-३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org