Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, ३०३. वैयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया [२१ - कंदयस्स हेह्रदो फोसणकालो विसेसाहिओ ॥३०१॥
[४।५।६।७।८।७।६। ५] केत्तियमेत्तो विसेसो ? सगकालस्स असंखेज्जा भागा' विसेसो। तं जहाजवमझकालब्भंतरे चदुसमयपाओग्गट्ठाणकालमत्तं घेत्तण उवरिमसत्त-छ-पंचसमयपाओग्गट्ठाणकालाणं उवरि दृविदे एत्तियं होदि [४ । ५। ६ । ७।७।६। ५ । ४] । एसो कालो तिसमय-विसमयपाओग्गहाणाणं कालं मोत्तण सेसकाले पेक्खिय दुगुणहाणी । पुणो जवमझकालस्स अवणिदसेसा असंखेज्जा भागा अत्थि । पुणो ते घेत्तूण हेटिमतिसमय-विसमयपाओग्गहाणकालम्मि सोहिदे सुद्धसेसं विसमय-तिसमयपाओग्गहाणकालस्स असंखेज्जा भागा होदि । पुणो एदम्मि पुव्वुत्तदुगुणकालम्मि सोहिदे किंचूणदुगुणकालो चिट्ठदि । तेण विसेसाहियो ति कालो परूविदो। कंदयस्स उवरि फोसणकालो विसेसाहिओ ॥३०२॥
[५।६।७।८।७।६।५।४।३।२] केत्तियमेत्तो विसेसो ? उवरिमतिसमय-विसमयपाओग्गट्टाणकालमेत्तो। सव्वेसु हाणेसु फोसणकालो विसेसाहिओ॥३०३॥
[४।५।६।७।८।७।६।५।४।३।२] इससे काण्डकके नीचे स्पर्शनकाल विशेष अधिक है ॥ ३०१ ॥
४, ५, ६, ७, ८, ७, ६, ५, विशेष कितना है ? वह विशेष अपने कालके असंख्यात बहुभाग प्रमाण है। यथायवमध्यकालके भीतर चार समय योग्य स्थानोंके काल मात्रको ग्रहण कर उपरिम सात, छहब पाँच समय योग्य स्थानों सम्बन्धी कालोंके ऊपर स्थापित करनेपर इतना होता है-४, ५, ६, ७, ७,६,५,४ । यह काल तीन समय व दो समय योग्य स्थानोंसम्बन्धी कालोंको छोड़कर शेष कालोंकी अपेक्षा करके दुगणा हीन है। पुनः यवमध्यकालकाकम करनेसे शेष रहा असंख्यात बहुभाग है। उसको ग्रहण कर अधस्तन तीन समय और दो समय योग्य स्थानों के कालमेंसे कम कर देने पर शेष दो समय व तीन समय योग्य स्थानोंके कालका असंख्यात बहुभाग रहता है। इसको पूर्वोक्त दुगुने कालमेंसे कम कर देनेपर कुछ कम दुगुणा काल रहता है। इसीलिये विशेष अधिक काल की प्ररूपणा की गई है। इससे काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल विशेष अधिक है ॥ ३०२ ॥
५, ६, ७, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २, विशेष कितना है ? वह ऊपरके तीन समय और दो समय योग्य स्थानों सम्बन्धी कालके बराबर है। इससे सब स्थानों में स्पर्शनकाल विशेष अधिक है ।। ३०३ ।।।
४, ५, ६, ७, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २, १ प्राप्रतौ 'असंखेजभाग', ताप्रतौ 'असंखेजभागो' इति पाठः ।
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