Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८४] छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, २, ८, ९. कारण-कआणं एगाणेगसहावाणमेगत्तविरोहादो। प्रियत्वं प्रेम । एदेसु पादेकं पच्चयसदो जोजणीयो कोहपञ्चए माणपचए मायपच्चए लोहपञ्चए रागपञ्चए दोसपच्चए मोहपच्चए पेम्मपञ्चए त्ति । एदेहि पच्चएहि णाणावरणीयवेयणा समुप्पजदे । पेम्मपच्चयो लोभ-रागपचएसु पविसदि त्ति पुणरुत्तो किण्ण जायदे ? ण, तेहिंतो एदस्स कथंचि भेदुवलंभादो । तं जहा-बज्झत्थेसु ममेदं भावो लोभो । ण सो पेम्मं, ममेदं बुद्धीए अपडिग्गहिदे वि दक्खाहले परदारे वा पेम्सुवलंभादो। ण रागो पेम्मं, माया-लोह-हस्स-रदि-पेम्मसमूहस्स रागस्स अवयविणो अवयवसरूवपेम्मत्त विरोहादो। (णिदाणपच्चए॥६॥
चकवट्टि-बल णारायण-सेहि-सेणावइपदादिपत्थणं णिदाणं) सो पञ्चओ, पमादमूलत्तादो मिच्छत्ताविणाभावादो वा। तेण णाणावरणीयवेयणा संपजदे। ण च एसो पञ्चओ मिच्छत्तपच्चए पविसदि, मिच्छत्तसहचारिस्स मिच्छत्तेण एयत्त विरोहादो। ण पेम्मपचए पविसदि, संपयासंपयविसयम्मि पेम्मम्मि संपयविसयम्मि णिदाणस्स पवेसविरोहादो । किमहं पुधसुत्तारंभो ? मिच्छत्त-कोह-माण-माया-लोभ-राग-दोस-मोह-पेम्मा
कारण व कार्य रूप तथा एक व अनेक स्वभावसे संयुक्त अवयव अवयवीके एक होनेका विरोध है।
प्रियताका नाम प्रेम है। इनमेंसे प्रत्येकमें प्रत्यय शब्दको जोड़ना चाहिये-क्रोधप्रत्यय, मानप्रत्यय, मायाप्रत्यय, लोभप्रत्यय, रागप्रत्यय, द्वेषप्रत्यय, मोहप्रत्यय और प्रेमप्रत्यय इनके द्वारा ज्ञानावरणीयकी वेदना उत्पन्न होती है।
शंका-चूंकि प्रेमप्रत्यय लोभ व रागप्रत्ययों में प्रविष्ट है अतः वह पुनरुक्त क्यों न होगा?
समाधान-नहीं, क्योंकि उनसे इसका कथंचित् भेद पाया जाता है । वह इस प्रकारसेबाह्य पदार्थों में 'यह मेरा है' इस प्रकारके भावको लोभ कहा जाता है। वह प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, 'यह मेरा है' ऐसी बुद्धिके अविषयभूत भी द्राक्षाफल अथवा परस्त्रीके विषयमें प्रेम पाया जाता है राग भी प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि, माया, लोभ, हास्य, रति और प्रेमके समूह रूप अवयवी कहलानेवाले रागके अवयव स्वरूप प्रेम रूप होनेका विरोध है।
निदान प्रत्ययसे ज्ञानावरणीय वेदना होती है ॥ ९ ॥
चक्रवर्ती बलदेव, नारायण, श्रेष्ठी और सेनापति आदि पदोंकी प्रार्थना अर्थात् अभिलाषा करना निदान है । वह प्रमादमूलक अथवा मिथ्यात्वका अविनाभावी होनेसे प्रत्यय है । उससे ज्ञानावरणीयकी वेदना उत्पन्न होती है। यह प्रत्यय मिथ्यात्व प्रत्ययमें प्रविष्ट नहीं होता, क्योंकि, वह मिथ्यात्वका सहचारी (अविनाभावी) है, अतः मिथ्यात्वके साथ उसकी एकताका विरोध है ! वह प्रेम प्रत्ययमें भी प्रविष्ट नहीं होता, क्योंकि, प्रेम सम्पत्ति एवं असंपत्ति दोनोंको विषय करने. वाला है, परन्तु निदान केवल सम्पत्तिको ही विषय करता है। अत एव उसका प्रेममें प्रविष्ट होना विरुद्ध है।
शंका-निदान प्रत्ययकी प्ररूपणाके लिये पृथक सूत्र किसलिये रचा गया हैं ?
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