Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७४] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, ३१२, कंदयस्स हेह्रदो जीवा विसेसाहिया ॥३१२॥ एदं पि सुगम। कंदयस्म उवरिं 'जीवर विसेसाहिया ॥३१३॥ सुगमं । सव्वेसु हाणेसु जीवा विसेसाहिया ।।३१४॥ सुगमं । एवमणप्पाबहुगे समत्ते जीवसमुदाहारे ति तदिया चूलिया समत्ता । एवं वेयणभावविहाणे त्ति समत्तमणियोगगद्दारं । उनसे काण्डकके नीचे जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३१२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। उनसे काण्डकके ऊपर जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३१३ ॥ यह सूत्र सुगम है। उनसे सब स्थानोंमें जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३१४ ॥ यह सूत्र सुगम है।
इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त हो जानेपर जीवसमुदाहार नामकी तृतीय चूलिका समाप्त होती है।
इस प्रकार वेदनाभावविधान यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
१ श्राप्रतौ 'उवरिम-' इति पाठ।।
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