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४, २, ७, २६७.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया (२३३
तत्थ ताव चरिमउव्वंकवादणविहाणं भणिस्सामो-उक्कस्सपरिणामट्ठाणेण पजवसाणउव्वंके घादिदे चरिमअट्ठकस्स हेट्टा अणंतगुणहीणं, तस्सेव हेहिमउव्वंकट्ठाणस्सुवरि अणंतगुणं होदूण दोण्णं पि अंतरे पढमं हदहदसमुप्पत्तियट्टाणं उप्पजदि । पुणो अणंतभागहीणदुचरिमहाणेण तम्हि चेव पजवसाणाणुभागे घादिदे पुव्वुप्पण्णट्ठाणस्सुवरि अणंतभागमाहियं होदूण विदियं हदहदसमुप्पत्तियहाणमुप्पजदि। कुदो ? अणंतभागहीणविसोहिहाणेण धादिदत्तादो। एवं जाए जाए हाणीए समण्णिदेण परिणामट्ठाणेण पञ्जवसाणहाणं धादिजदे ताए ताए सण्णाए सहिदाणि घादघादट्ठाणाणि उप्पज्जंति । एवं कदे चरिमअटुंकउव्वंकाणं विच्चाले परिणामट्टणमेत्ताणि चेव हदहदसमुप्पत्तियहाणाणि होति । पुणो उव्वंकस्स परिणामट्ठाणेण पजवसाणदुचरिमउव्वंके धादिदे सव्वजहण्णहदहदसमुप्पत्तियहाणस्स हेहा अणंतभागहीणं होदण वामपासे पढमट्ठाणमुप्पज्जदि । पुणो एदम्हादो अणुभागट्ठाणादो परिणाममेत्ताणि चेत्र हदहदसमुप्पत्तियहाणाणि पुव्वं व उप्पादेदव्वाणि । पुणो तेणेव उक्कस्सपरिणामट्ठाणेण तिचरिमउव्वंके धादिदे पुव्वुप्पण्ण. पंतीए जहण्णट्ठाणादो अणंतभागहीणं होदण अण्णं हाणं उप्पजदि । एवं एत्थ वि परिणामट्ठाणमेत्ताणि चेव संतकम्मट्ठाणाणि उप्पजंति । पुणो चदुचरिमादिघादट्ठाणाणि कमेण घादिय परिणामट्टाणमेत्ताणि धादघादट्टाणाणि उप्पादेदव्वाणि । एवं कदे छट्ठा. णविक्खंभपरिणामट्ठाण मेत्तायाम यादघादहाणपदरं होदि !
उनमें पहिले अन्तिम अवस्थानके घातने की विधि बतलाते उत्कट परिणामस्थानके द्वारा पर्यवसान ऊवकके घाते जानेपर अन्तिम अष्टांकके नीचे अनन्तगुणाहीन व उसके ही अध. स्तन ऊर्वकस्थानके ऊपर अनन्तगुणा होकर दोनोंके ही मध्यमें प्रथम हतहतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होता है। पश्चात् अनन्तवें भागसे हीन द्विचरम स्थानके द्वारा उसी पर्यवसान अनुभागके घाते जानेपर पूर्व उत्पन्न स्थानके ऊपर अनन्तवें भागसे अधिक द्वितीय हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होता है; क्योंकि, वह अनन्तभागहीन विशुद्धिस्थान द्वारा घातको प्राप्त हुआ है। इस प्रकार जिस जिस हनिसे सहित परिणामस्थानके द्वारा पर्यवसानस्थान घाता जाता है उस उस संज्ञासे सहित घातघात उत्पन्न होते हैं। इस विधानसे अन्तिम अष्टांक और ऊर्वकके मध्यमें परिणामस्थानोंके बराबर ही हतहतसमुत्पत्तिकस्थान होते हैं। पश्चात् ऊर्वकके परिणामस्थान द्वारा पर्यवसान द्विचरम ऊवकके घाते जानेपर सर्वजघन्य हतहतसमुत्पत्तिकस्थानके नीचे अनन्तभागहीन होकर वाम पार्श्वभागमें प्रथम स्थान उत्पन्न होता है। तत्पश्चात् इस अनुभागस्थानसे परिणामस्थानोंके बराबर ही हतहतसमुत्पत्तिकस्थानोंको पहिलेके हो समान उत्पन्न कराना चाहिये। फिर उसी उत्कृष्ट परिणामस्थानके द्वारा त्रिचरम ऊर्वकके घाते जानेपर पूर्व उत्पन्न पंक्तिके जघन्य स्थानसे अनन्तभागहीनहोकर अन्य स्थान उत्पन्न होता है । इस प्रकारसे यहाँपर भी परिणामस्थानोंके बराबर ही सत्कर्मस्थान उत्पन्न होते हैं । तत्पश्चात् क्रमसे चतुश्चरम आदि घातस्थानोंको क्रमसे घातकर परिणामस्थानोंके बराबर घातघातस्थानोंको उत्पन्न कराना चाहिये। ऐसा करनेपर षस्थान विष्कम्भव परिणामस्थान आयाम युक्त घातघातस्थानप्रतर होता है।
छ. १२-३०.
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