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२४२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २६६. उक्कस्सेण वि एत्तियाणि वि होंति त्ति जाणावणहं । णाणाजीवकालपमाणाणुगमो किमटुमागदो ? एक्केक्कम्हि' हाणे जीवा जहणणेण एत्तियं कालमुक्कस्सेण वि एत्तियं कालमच्छति त्ति जाणावणटुं । वड्डिपरूवणा किमहमागदा ? अणंतरोवणिधापरंपरोवणिधासरूवेण जीवाणं वड्डिपरूवण । जवमझपरूवणा किमहमागदा ? कमेण वड्डमाणाणं जीवाणं हाणाणमसंखेज्जदिमागे जवमझ होदण तत्तो उवरिमसव्वट्ठाणाणि जीवेहि विसेसहीणाणि होदण गदाणि त्ति जाणावणहं । फोसणपरूवणा किमट्ठमागदा १ अदीदे काले एगजीवेण एगमणुभागट्ठाणं एत्तियं कालं पोसिदमिदि जाणावणटुं। अप्पाबहुगं किमट्ठमागदं ? पुव्वुत्ततिविहाणुभागट्ठाणेसु जीवाणं थोवबहुत्तपरूवणहूँ ।
एयट्ठाणजीवपमाणाणुगमेण एककम्हि हाणम्हि जीवा जदि होंति एक्को वा दो वा तिण्णि वा जाव उकस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २६६ ॥
हैं, इस बात के ज्ञापनार्थ वह अधिकार प्राप्त हुआ है ।
शंका- नानाजीवकालप्रमाणानुगम किसलिये आया है ?
समाधान- एक एक स्थानमें जीव जघन्यसे इतने काल तक और उत्कृष्टसे भी इतने काल तक रहते हैं, इसके ज्ञापनार्थ यह अधिकार आया है।
शंका-वृद्धिप्ररूपणा किसलिये आयी है ?
समाधान-वह अनन्तरोपनिधा और परम्परोनिधा स्वरूपसे जीवोंकी वृद्धिप्ररूपणा करनेके लिये आयी है।
शंका-यवमध्बप्ररूपणा किसलिये आयी है ?
समाधान-क्रमसे वृद्धिको प्राप्त होनेवाले जीवोंके स्थानोंके असंख्यातवें भागमें यामध्य होकर उससे आगेके सब स्थान जीवोंसे विशेषहीन होकर गये हैं, यह बतलानेके लिये वृद्धिप्ररूपणा प्राप्त हुई है।
शंका- स्पर्शनप्ररूपणा किसलिये आयी है ?
समाधान-अतीत कालमें एक जीवके द्वारा एक अनुभागस्थानका इतने काल स्पर्शन किया गया है, यह जतलानेके लिये स्पशप्ररूपणा प्राप्त हुई है।
शंका-अल्पबहुत्व किसलिये आया है ?
समाधान-वह पूर्वोक्त तीन प्रकारके अनुभागस्थानोंमें जीवोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करनेके लिये आया है।
एकस्थानजीवप्रमाणानुगमसे एक एक स्थानमें जीव यदि होते हैं तो एक, दो, तीन अथवा उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग तक होते हैं ॥ २६ ॥
१ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु 'एकम्हि' इति पाठः।
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