Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २७६.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया . [ २५१ दुगुणवड्डीए एगेगजीववड्डिदद्धाणं सरिसमिदि कधं णव्वदे ? गुरुवदेसादो। आइरियोवदेसो किण्ण चप्पलओ' १ गंगाणईए पवाहो म अविच्छेदेण आइरियपरंपराए आगदस्स अप्पमाणत्तविरोहादो।) पुणो पुन्विल्लभागहारादो दुगुणं भागहारं विरलिय दुगुणवड्डिजीवेसु समखंडं कोण दिण्णेसु रूवं पडि एगेगजीवपमाणं पावदि । पुणो एत्थ एगजीवं घेत्तूण असंखेजलोगमेत्तेसु जोवेहि दुगुणवड्डिजीवसमाणेसु हाणेसु गदेसु तदो उवरिमठाणे पक्खित्ते तदित्थजीवपमाणं होदि । णवरि पढमदुगुणवड्डीए' एगजीववड्डिदअद्धाणस्स अद्धं गंतूण विदियदुगुणवड्डीए एगो जीवो वड्ढदि । पुणो एत्तियं चेव अद्धाणं गंतूण विदियो जीवो वड्ढदि । एवमणेण विहाणण णेयव्वं जाव विरलणमेत्तजीवा पइहा ति । ताधे चउग्गुणवड्डी होदि । विदियदुगुणवड्डिअद्धाणं पढमदुगुणवड्डिअद्धाणेण सरिसं । कुदो ? पढमदुगुणवड्डीए' एगजीववड्डिदद्धाणस्स दुभागमवद्विदं सरिसं गंतूण विदियदुगुणवड्डीए एगेगजीववड्डिसमुवलंभादो।
पुणो चदुग्गुण-पढमदुगुणवड्डिभागहारं विरलेदृण चदुग्गुणवड्डिजीवेसु समखंडं कादण दिण्णेसु रूवं पडि एगेगजीवपमाणं पावदि । पुणो चदुग्गुणवड्डिजीवा आवलियाए
शंका-प्रथम दुगुणवृद्धिमें एक एक जीवकी वृद्धिको प्राप्त अध्वान सदृश है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान - वह गुरुके उपदेशसे जाना जाता है। शंका-आचार्यका उपदेश मिथ्या क्यों नहीं हो सकता है ?
समाधान-गंगानदीके प्रवाहके समान विच्छेदसे रहित होकर आचायपरम्परासे आये हुए उपदेशके अप्रमाण होनेका विरोध है।
___पश्चात् पूर्व भागहारसे दुगुणे भागहारका विरलनकर दुगुणवृद्धियुक्त जीवोंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक जीवका प्रमाण प्राप्त होता है। पुनः यहाँ एक जीवको ग्रहण कर जीवोंसे अर्थात् जीवप्रमाणकी अपेक्षा दुगुणवृद्धि युक्त जीवोंके समान असंख्यातलोक मात्र स्थानोंके बीत जानेपर उससे भागेके स्थानमें उसे मिलानेपर वहाँ के जीवोंका प्रमाण होता है । विशेष इतना है कि प्रथम दुगुणवृद्धिमें गुणहानिमें एक जीवकी वृद्धि युक्त अध्वानका अर्ध भाग जाकर द्वितीय दुगुणवृद्धिमें एक जीव बढ़ता है। फिर इतना ही अध्वान जाकर द्वितीय जीव बढ़ता है। इस प्रकार इस विधिसे विरलन राशि प्रमाण जीवों के प्रविष्ठ होने तक ले जाना चाहिये । उस समय चतुगुणी वृद्धि होती है। द्वितीय दुगुणवृद्धिका अवान प्रथम दुगुणवृद्धिके अध्वानके सहश है, क्योंकि, प्रथम दुगुणवृद्धिमें एक जीवकी वृद्धि युक्त अध्वानका अर्ध भाग समानरूपसे अवस्थित जाकर द्वितीय दुगुणवृद्धिमें एक जीवकी वृद्धि पायी जाती है।
- पुनः प्रथम दुगुणवृद्धिके भागहारसे चौगुणे भागहारका विरलन करके चौगुणी वृद्धि युक्त जीवोंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक जीवका प्रमाण प्राप्त होता
१ प्रतिषु 'चप्फलो ' इति पाठः। २ ताप्रतौ 'मेत्तेसु जीबेसु जीवेहि' इति पाठः। ३ अ-आप्रत्योः 'समासेसु' इति पाठः । ४ प्रतिषु 'पढमगुणहाणीए' इति पाठः । ५ तापतौ 'पढमगुणवड्डीए' इति पाठः।...
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