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४, २, ७, २८९.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया [२६५
णाणाजीवअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवडि-[ हाणि-] हाणंतराणि आवलियाए असंखेजदिभागो ॥ २८७॥
___ एदस्स साहणं वुच्चदे । तं जहा-एगगुणहाणिअद्धाणमेत्तअसंखेज्जलोगअणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणाणं जदि एगा दुगुणवड्डिसलागा लब्मदि तो सव्वाणुभागबंधज्झवसाणद्वाणाणं किं लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तणाणादुगुणवड्डि-हाणि 'सलागाओ लभंति ।
_णाणाजीवअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवड्डि-हाणिहाणंतराणि थोवाणि ॥ २८८॥
कुदो ? आवलियाए असंखेज्जभागपमाणत्तादो। ___ एयजीवअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवडि-हाणिहांणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ २८६ ॥
कुदो ? असंखेज्जलोगपमाणत्तादो । एदमप्पाबहुगं पमाणपरूवणादो चेव अवगदमिदि णेव परूवेदव्वं ? ण, मंदमेहाविसिस्साणुग्गहढं परूवणाए कीरमाणाए दोसाभास्मरण कराने के लिये उसकी फिरसे प्ररूपणा की जा रही है।
नाना जीवों सम्बन्धी अनुभागबन्धाध्यसानस्थानों सम्बन्धी दुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ।। २८७ ॥
इसका साधन कहते हैं। वह इस प्रकार है -- एक गुणहानिअध्वानके बराबर असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंके यदि एक दुगुणवृद्धिशलाका पायी जाती है तो समस्त अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंके कितनी दुगुणवृद्धिशलाकायें पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण नानादुगुणवृद्धि-हानि शलाकायें पायी जाती हैं। ___ नाना जीवों सम्बन्धी अनुभागबन्धाध्यवसानदुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर स्तोक
कारण कि वे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं।
उनसे एक जीव सम्बन्धी अनुभागबन्धाध्यवसानदुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ।। २८९ ॥
कारण कि असंख्यात लोक प्रमाण हैं ।
शङ्का-यह अल्पबहुत्व चूंकि प्रमाणप्ररूपणासे ही जाना जा चुका है, अतएव उसकी यहाँ प्ररूपणा नहीं करनी चाहिये
समाधान-नहीं, क्योंकि, मन्दबुद्धि शिष्यांके अनुग्रहार्थ उसकी यहाँ प्ररूपणा करनेमें कोई दोष नहीं है।
१ ताप्रतौ ‘णाणागुणवडिहाणि' इति पाठः । छ. १२-३४
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