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४, २, ७, २८१.] बेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया [२५५ यस्स दुभागेण गुणिदेसु जवमझजीवा होति । जवमज्झादो हेडिमदुगुणहाणीओ जहण्णपरित्तासंखेजयस्स रूवूणद्धछेदणयमेत्ताओ होति त्ति वुत्तं होदि । जवमझादो हेट्ठिमदुगुणवड्डीयो जहण्णपरित्तासंखेजयस्स रूवूणद्धछेदणयमेत्तीयो ति कधं णव्वदे ? जुत्तीदो। का सा जुत्ती ? उवरि भणिस्सामो ।
तेण परं विसेसहीणा॥२८०॥
तेण जवमझेण परमुवरि जीवा विसेसहीणा होदण गच्छंति । कुदो ? साभावियादो तिव्वसंकिलेसेण जीवाणं पाएण संभवाभावादो वा।
__ एवं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव उकस्सअणुभागबंधज्झवसाणहाणे त्ति ॥ २८१ ॥
एवं विसेसहीणा विसेसहीणा त्ति 'विच्छाणिदेसो । तेण जवमझादो उवरि सव्वट्ठाणाणि अणंतरोवणिधाए जीवेहि विसेसहीणाणि त्ति दडव्वं । एदस्स भावत्थो वुच्चदे । तं जहा-पढमदुगुणवड्डिभागहारं जहण्णपरित्तासंखेजयस्स दुभागेण गुणिय विरलेदूण जवमझजीवेसु समखंडं कादण दिण्णेसु एकेकस्स रूवस्स एगेगजीवपमाणं पावदि । यवमध्यके जीव होते हैं। अभिप्राय यह है कि यवमध्यसे नीचेकी दुगुणहानियाँ जघन्य परीता. संख्यातके एक कम अर्घच्छेदोंके बराबर होती हैं।
शंका- यवमध्मसे नीचेकी दुगुणवृद्धियाँ जघन्य परीतासंख्यातके एक कम अर्धच्छेदोंके बराबर हैं, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है।
समाधान-वह युक्तिसे जाना जाता है । शंका-वह युक्ति कौनसी है ? समाधान-उस युक्तिको आगे कहेंगे । इसके आगे जीव विशेष हीन हैं ।। २८० ॥
उससे अर्थात् ययमध्यसे आगे जीव विशेष हीन होकर जाते है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है, अथवा तीव्र संक्लेशसे युक्त जीवोंकी प्रायः सम्भावना नहीं है।
इस प्रकार उत्कुष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान तक जीव विशेषहीन विशेषहीन होकर जाते हैं ।। २८१॥
इस प्रकार विशेषहीन विशेषहीन, यह वीप्सा निर्देश है। इसलिये यवमध्यसे आगे सब स्थान अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा जीवोंसे विशेष हीन हैं, ऐसा समझना चाहिये । इसका भावार्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-प्रथम दुगुणवृद्धिके भागहारको जघन्य परीतासंख्यातके अर्धभागसे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उसका विरलन करके यवमध्यके जीवोंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक जीवका प्रमाण प्राप्त होता है। इसलिये इसको इसी प्रकारसे स्थापित
१ अ-आप्रत्योः 'मिछा', ताप्रतौ 'भि (इ) च्छा' इति पाठः ।
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