Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २८१.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया [२६१ गाहिंतो उवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ संखेजगुणा [ओ होति । ण च एवं, जवमझहेद्विमगुणहाणिसलागाहिंतो उवरिमसव्वगुणहाणिसलागाओ असंखेजगुणाओ त्ति उवरि जवमज्झपरूवणाए भण्णमाणत्तादो। तदो जहण्णपरित्तासंखेजयस्स अद्धछेदणय. मेत्ताओ जवमझहेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाओ ण होति त्ति परिच्छिञ्जदे । तम्हा रूवूणजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्ताओ हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाओ त्ति घेत्तव्वं, एवं गहिदे 'हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाहिंतो उवरिमगुणहाणिसलागाणमसंखेजगुणत्तु ववत्तीदो।
संपहि रूवूणजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेत्तासु हेडिमगुणहाणिसलागासु संतासु जहा उवरिमगुणहाणिसलागाणमसंखेञ्जगुणत्तं होदि तहा परूवणं कस्सामो। तं जहाउक्कस्ससंखेजं विरलिय स्वं पडि जहण्णपरित्तासंखेजछेदणएसु दिण्णेसु जो एदेसि सव्वेसिं समासो सो जवमझजीवद्धछेदणयपमाणं । पुणो एत्थ एगेगरूवधरिदम्हि एगेगरूवे गहिदे उक्कस्ससंखेजमेत्तरूवाणि होति । पुणो ताणि पडिरासिय एगरूवधरिदेण रूवणजहण्णपरित्तासंखेजद्धच्छेदणयमेत्तण पडिरासिदउक्कस्ससंखेजमोवट्टिय लद्धं पुचिल्लमागहारादो संखेजगुणहीणं उक्स्ससंखेजमेत्तपुचिल्लविरलणाए पासे विरलिय पडिरासिद उक्कस्ससंखेजं समखंडं कादूण दिण्णे रूवं पडि जहण्णपरित्तासंखेजयस्स रूवूणद्धछेदणयपमाणं
अधस्तन नानागुणहानिशलाकाओंसे उपरिम नानागुणहानिशलाकायें संख्यातगुणी होनी चाहिये। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, यवमध्यकी अधस्तन गुणहानिशलाकाओंकी अपेक्षा उपरिम सब गुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी हैं, ऐसा अगे यवम यप्ररूपणामें कहा जानेवाला है। इसलिये यवमध्यकी अधस्तन गुणहानिशलाकायें जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर नहीं होती हैं, यह जाना जाता है। इस कारण एक कम जघन्य परीतासंख्यातके अधच्छेदोंके बराबर अधस्तन गुणहानिशलाकायें होती हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, ऐसा ग्रहण करनेपर अधस्तन नानागणहानिशलाओंकी अपेक्षा उपरिम गुणहानिशलाकाओंका असंख्यातगुणत्व बन जाता है।
अब एक कम जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदों के बराबर अधस्तन गुणहानिशलाकाओंके होनेपर जिस प्रकारसे उपरिम गुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी होती हैं वैसी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-उत्कृष्ट संख्यातका विरलन करके प्रत्येक अंकके प्रति जघन्य परीत संख्यातके अर्धच्छेदोंको देनेपर जो इन सबका जोड़ हो वह यवमध्य जीवोंके अर्धच्छेदोंका प्रमाण होता है । फिर यहाँ एक एक अंकके प्रति प्राप्त राशिमेंसे एक एक अंकको ग्रहण करनेपर उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण अंक होते हैं। फिर उनको प्रतिराशि करके एक कम जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंके बराबर एक अंकके प्रति प्राप्त राशिसे प्रतिराशि रूप उत्कृष्ट संख्यातको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो वह पूर्व भागहारकी अपेक्षा संख्यातगुणा हीन होता है । इसको उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण पूर्व विरलन राशिके पासमें विरलित करके प्रतिराशिभूत उत्कृष्ट संख्यातको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक
१ ताप्रतौ 'गहिदेहि हेहिम' इति पाठः । २ प्रतिषु 'अद्धं' इति पाठः ।
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