Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २७९. एवमेदं सोलसभागं धुवं कादण एगेगजीवं' वड्डाविय णेयव्वं जाव हेडिमविरलणमेत्तजीवा पविट्ठा त्ति । ताधे बत्तीसगुणवड्डी होदि । तदो एदं बीजपदेणाणणावहारिय उवरि यव्वं जाव दुरूवूणजहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेतदुगुणवड्डीयो उवरि चडिदाओ त्ति ।
पुणो पढमदुगुणवड्डिभागहारं जहण्णपरित्तासंखेन्जयस्स चदुब्भागेण गुणिय विरलेदूण एदाए दुगुणवड्डीए समखंडं कादण दिण्णाए एककस्स रूवस्स एगेगजीवपमाणं पावदि । तदो जवमज्झस्स हेहिमदुगुणवड्डिहाणे जीवा आवलियाए असंखेजदिभागो। विदिए अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणे जीवा तत्तिया चेव । तदिए अणुभागबंधझवसाणट्ठाणे जीवा तत्तिया चेव । एवं णेयव्वं जाव पढमदुगुणवड्डीए एगजीवदुगुणवड्डिदद्धाणं जहण्णपरित्तासंखेजयस्स चदुब्भागेण खंडिय तत्थ एगखंडमेत्तद्धाणमेदिस्से गुणहाणीए गदं ति । ताधे हेट्टिमविरलणाए एगरूवधरिदे जीवो पक्खिविदव्यो। पक्खित्ते उवरिमाणजीवपमाणं होदि । पुणो एदेणेव जीवपमाणेण अवहिदाणि होदूण पुव्विल्लद्धाणमेत्ताणि चेव ढाणाणि गच्छति । तदो हेटिमविरलणाए एगरूवधरिदेगजीवे तदित्थट्ठाणजीवेसु आवलियाए असंखेजदिभागमेत्तजीवेसु पक्खित्ते उवरिमतदणंतरट्ठाणजोवपमाणं होदि । एवमवहिदमद्धाणं गंतूण एगेगजीवं वड्डिय णेयव्वं जाव हेट्टिमविरलणमेत्तसव्वे जीवा पविट्ठा ति । ताधे जवमज्झजीव माणं होदि । जहण्णट्ठाणजीवेसु जहण्णपरित्तासंखेज
........................... इस सोलहवें भागको ध्रुव करके अधस्तन विरलन राशि:प्रमाण जीवोंके प्रविष्ट होने तक एक एकजीवको बढ़ाकर ले जाना चाहिये । तब बत्तीसगुणी वृद्धि होती है । पश्चात् इस बीजपदसे इसका निश्चय कर दो अंकोंसे कम जघन्य परीतासंख्यातके अर्द्धच्छेदों प्रमाण दुगुणवृद्धियाँ आगे जाने तक ले जाना चाहिये।
पुनः प्रथम दुगुणवृद्धिके भागहारको जघन्य परीतासंख्यातके चतुर्थ भागसे गुणित करके विरलिन कर इस दुगुणवृद्धिको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक जीवका प्रमाण प्राप्त होता है। तब यवमध्यके अधस्तन दुगुणवृद्धिस्थानमें जीव आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । द्वितीय अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानमें जीव उतने ही हैं । तृतीय अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानमें जीव उतने ही है। इस प्रकारसे प्रथम दुगुणवृद्धिमें एकजीवदुगुणवृद्धि युक्त अध्धानको जघन्य परीतासंख्यातके चतुर्थ भागसे खण्डित कर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण अध्वान इस गुणहानिका जाने तक ले जाना चाहिये। तब अधस्तन विरलन राशिके एक जीवका प्रक्षेप करना चाहिये । उसका प्रक्षेप करनेपर आगेके स्थानके जीवोंका प्रमाण होता है। पश्चात् इसी जीवप्रमाणसे अवस्थित होकर पूर्वोक्त अध्वान प्रमाण ही स्थान व्यतीत होते हैं। तब अधस्तन विरलनके एक अंकके प्रति प्राप्त एक जीवको वहाँ के स्थानके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवों में मिलानेपर आगके तदनन्तर स्थानके जीवोंका प्रमाण होता है। इस प्रकारसे अवस्थित अध्वान जाकर एक एक जीवको बढ़ाकर अधस्तन विरलनराशि प्रमाण सब जीवोंके प्रविष्ट होनेतक ले जाना चाहिये । तब यवमध्यके जीवोंका प्रमाण होता है। जघन्य स्थानके जीवोंको जघन्य परीतासंख्यातके अर्ध भागसे गुणित करनेपर
१ अ-श्राप्रत्योः 'कादूण ण एगेग' इति पाठः।
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