Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २७२. ]
वेणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया
[ २४५
पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि होंति । होंताणि वि तसजीवमेत्ताणि द्वाणाणि तसजीवसहिदाणि वट्टमाणकाले होंति, एगेगुदयट्ठाणम्मि एगेगतसजीवे विदे जीवसहिदणाणं तसजीव मे ताणमुवलंभादो । एत्थ अणुभागबंधकवसाणट्ठाणेसु जीवसमुदाहारो रूविदो । तत्थ कसायपाहुडे कसा उदयड्डाणेसु । तदो दोण्णं' जीवसमुदाहाराणं एगमहिरणं णत्थि त्ति विरोहुन्भावणमजुत्तं । तम्हारे दोणं सुत्ताणं णत्थि विरोहोति सिद्धं | एवं णिरंतरट्ठाणजीवपमाणाणुगमो समत्तो ।
सांतरट्ठाणजीवपमाणागमेण जीवेहि विरहिदाणि द्वाणाणि एको वा दो वा तिणि वा उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ २७२ ॥
विरहिद मेमणुभागबंधट्ठाणं होदि । णिरंतरं दो वि होंति, तिणि वि होंति, एवं जाव उकस्सेण जीवविरहिदट्ठाणाणि णिरंतरमसंखेज्जलोग मेत्ताणि वि होंति, असंखेज्जलोगमेत अणुभागबंधट्ठाणेसु जदि वि लोगमेत्तट्ठाणाणि तसजीव सहगदाणि होंति तो वि जीवविरहिदडाणाणं णिरंतरमसंखेज्जलोगमेत्ताणं उवलंभादो | एवं सांतरहाणजीवपमाणागमो समत्तो ।
णाणाजीव कालप्रमाणागमेण एकेकम्हि द्वाणम्मि णाणा जीवा केवचिरं कालादो होंदि ? ॥ २७२ ॥
जीवांके बराबर स्थान त्रस जीवोंसे सहित वर्तमान कालमें होते हैं, क्योंकि, एक एक उदयस्थान में एक एक त्रस जीवको स्थापित करनेपर जीवों सहित स्थान त्रस जीवोंके बराबर पाये जाते हैं । यहाँ अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानों में जीवसमुदाहार की प्ररूपणा की गई है, परन्तु वहाँ कषायपाहुड में कषायादयस्थानों में उसकी प्ररूपणा की गई है । अतः उन दोनों समुदाहारों का एक आधार न होने से विरोध बतलाना अनुचित है । इस कारण उन दोनों सूत्रोंमें कोई विरोध नहीं है, यह सिद्ध है ।
इस प्रकार निरन्तरस्थान जीवप्रमाणानुगम समाप्त हुआ ।
सान्तरस्थानजीव प्रमाणानुगमसे जीवोंसे रहित स्थान एक, अथवा दो, अथवा तीन, इस प्रकार उत्कृष्टसे असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं ।। २७१
जीवों से रहित एक अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होता है, निरन्तर दो भी होते हैं, और तीन भी होते हैं । इस प्रकार उत्कृष्टसे जीव रहित स्थान निरन्तर असंख्यात लोक प्रमाण भी होते हैं. क्योंकि, असंख्यातलोक प्रमाण अनुभागबन्धस्थानों में यद्यपि लोक प्रमाण स्थान त्रस जीव सहित होते हैं तो भी जीव रहित स्थान निरन्तर असंख्यात लोक प्रमाण पाये जाते हैं । इस प्रकार सान्तरस्थान जीवप्रमाणानुगम समाप्त हुआ ।
नानाजी कालप्रमाणानुगससे एक एक स्थानमें नाना जीवोंका कितना काल ॥ २७२ ॥
१ श्राप्रती 'तदोष्णं', ताप्रतौ 'तं दोष्णं' इति पाठः । २ - त्यो ' तं जहा', ताम्रतौ 'तं जहा ( तम्हा ) इति पाठः ।
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