Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, २१४.
ir एत्थ पक्वा बारस १२ । पिसुलाणि छासही ६६ । पिसुलापिसुलाणि वीसुत्तर विसमेत्ताणि २२० । एवं द्वविय दुगुणवड्डी बुच्चदे । तं जहा - उक्कस्ससंखेज्ज - यस्स तिष्णिचदुब्भागमेत्ता पक्खेवा अस्थि' १२ । ते पुध हविय पुणो एत्थ उकस्ससंखेज्जयस्स चदुब्भागमेत्ता सगलपक्खेवा जदि होंति तो दुगुणड्डिड्डाणं होदि । ण च एत्तिमत्थि । तदो एत्थ दुगुणवड्डी ण उप्पज्जदि ति ? ण, पिसुलेहिंतो उकस्ससंखेज्जयस्स चदुभागमेत पक्नेवुवलंभादो । तं जहा - उक्कस्स संखेज्जतिष्णिचदुब्भागस्स रूवू
संकलणमेत्ताणि पिसुलाणि उक्कस्ससंखेज्जयस्स तिष्णिचदुब्भागमुवरि चडिदूण हिदसंखेज्जभागवड्डिाणम्मि अस्थि । तेसिमेगादिएगुत्तरकमेण द्विदाणं समकरणे कीरमाणे पढमिल्लमेगपिसुलं घेत्तूण चरिम पिसुलेसु पक्खित्ते उक्कस्ससंखेज्जयस्स तिण्णिचदुब्भागमेतपिसुलाणि होंति । विदियद्वाणदिदो पिसुलाणि घेत्तूण दुचरिमपिसुलेसु दुरूवूणेसु पक्खित्ते एत्थ वि उकस्ससंखेज्जयस्स तिष्णिचदुब्भागमे तपिसुलाणि होंति । तदियड्डाणदितिणिपिलाणि घेत्तूण तिचरिमपिसुलेसु तिरूवूणेसु पक्खित्ते उक्कस्ससंखेजयस्स तिष्णिचदुब्भागमे तपिसुलाणि होंति । एवं सव्वेसिं समकरणे कदे उक्कस्तसंखेज्जयस्स
संदृष्टिमें यहाँ प्रक्षेप बारह ( १२ ), पिशुल छयासठ (६६) और पिशुलापिशुल दो सौ बीस (२२० ) मात्र हैं । इस प्रकार स्थापित करके दुगुणी वृद्धिकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है
शंका–उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग ( १६ x ३ = १२ ) मात्र प्रक्षेप हैं । इनको पृथ स्थापित करके फिर यहाँ उत्कृष्ट संख्यातके चतुर्थ भाग मात्र सकल प्रक्षेप यदि होते हैं तो दुगुणी बुद्धिका स्थान होता है परन्तु इतना है नहीं । अतएव यहाँ दुगुणी वृद्धि नहीं उत्पन्न होती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि पिशुलोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट संख्यातके चतुर्थ भाग मात्र प्रक्षेप पाये जाते हैं। यथा- उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग मात्र आगे जाकर स्थित संख्यात भागवृद्धिस्थानमें उत्कृष्ट संख्यातके एक कम तीन चतुर्थ भागके संकलन प्रमाण पिशुल हैं। एकको आदि लेकर एक अधिक क्रमसे स्थित उनका समीकरण करनेमें प्रथम स्थानके एक पिशुलको ग्रहणकर अन्तिम पिशुलोंमें मिलानेपर उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग मात्र पिशुल होते हैं । द्वितीय स्थान में स्थित दो पिशुलोंको ग्रहणकर दो कम द्विचरम पिशुलोंमें मिलानेपर यहाँ भी उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग मात्र पिशुल होते हैं तृतीय स्थानमें स्थित तीन पिशुलोंको ग्रहणकर तीन त्रिचरम पिशुलोंमें मिलानेपर उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग मात्र पिशुल होते हैं । इस प्रकार सबका समीकरण करनेपर उत्कृष्ट संख्यातके तीन चतुर्थ भाग आयत और एक कम तीन चतुर्थ
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१ प्रतिषु १२ संख्येयम् 'ते पुत्र इविः' इत्यतः पश्चादुपलभ्यते ।
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