Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २१७.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [ १९५ भागवड्डीयो वि कंदयमेताओ अत्थि, तारो कि ण परूविदाओ ? ण एस होदि दोसो, "अणंतभागभहियं कंदयं गंतूण असंखेजभागभहियहाणं होदि" त्ति पुन्विल्लसुत्तादो चेव तदवगमादो उवरिमसुत्तेण भण्णमाणत्तादो वा। संपहि संखेञ्जगुणवड्डिमाधारं कादूण हेहिमाणपरूवणहमुत्तरसुत्तं भणदि
संखेजभागब्भहियं कंडयं गंतूण संखेजगुणभहियं ठाणं॥२१७॥
संखेजभागवड्डीयो कंदयभेत्ताओ जाव ण गदाओ ताव संखेजगुणवड्डी ण उप्पञ्जदि, कंदयमेत्ताओ संखेजभागवड्डीयो गंतूण चेव उप्पजदि ति चेत्तव्वं । असंखेजगुणवड्डिमाधारं कादृण हेट्ठिमसंखेजगुणवड्डिपमाणपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
संखेजगुणब्भहियं कंदयंगंतूण असंखेज्जगुणभहियं ठाणं ॥२१॥ ___ असंखेजगुणवड्डी उप्पजमाणा संखेजगुणवड्डीणं कंडयं गंतूण चेव उप्पजदि, अण्णहा ण उप्पजदि त्ति घेत्तव्वं । अणंतगुणवड्डिणिरु भणं काण हेट्ठिमाणपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तमागयं
असंखेजगुणब्भहियं कंडयं गंतूण अणंतगुणन्भहियं हाणं॥२१॥
शंका-असंख्यातभागवृद्धियों के बीच बीचमें अनन्तभागवृद्धियाँ भी काण्डक प्रमाण होती हैं, उनकी सूत्र में प्ररूपणा क्यों नहीं की गई है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, “अनन्तवें भागसे अधिक काण्डक प्रमाण जाकर असंख्यातवें भागसे अधिक स्थान होता है" इस पूर्वोक्त सूत्रसे उसका ज्ञान हो जाता है। अथवा, उसका कथन आगे कहे जानेवाले सूत्रके द्वारा किया जायगा।
अब संख्यातगुणवृद्धिको आधार करके नीचेके स्थानोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
संख्यात भागसे अधिक काण्डक जाकर संख्यातगुणा अधिक स्थान होता है ॥ २१७ ॥
जबतक संख्यातभागवृद्धियाँ काण्डक प्रमाण नहीं वीतती हैं तबतक संख्यातगुणवृद्धि नहीं उत्पन्न होती है, किन्तु काण्डक प्रमाण संख्यातभागवृद्धियाँ जाकर ही वह उत्पन्न होती है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये। अब असंख्यातगुणवृद्धिको आधार करके उससे नीचेकी संख्यातगुणवृद्धिके प्रमाण की प्ररूपणा करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
संख्यातगुणा अधिक काण्डक जाकर असंख्यातगुणा अधिक स्थान होता है ॥२१८॥
असंख्यातगुणवृद्धि उत्पन्न होती हुई संख्यातगुणवृद्धियोंके काण्डकके वीतने पर ही उत्पन्न होती है, इसके बिना वह उत्पन्न नहीं होती; ऐसा ग्रहण करना चाहिये। अब अनन्तगुणवृद्धिकी विवक्षा करके नीचे के स्थानों की प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र प्राप्त होता है -
असंख्यातगुणा अधिक काण्डक जाकर अनन्तगुणा अधिक स्थान उत्पन्न होता है ॥ २१६ ॥
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