Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २२०. अणंतगुणवड्डी उप्पज्जमाणा सव्वा वि असंखेज्जगुणवड्डीणं कंदयं गंतृण चेव उप्पज्जदि, ण अण्णहा इदि ददुव्यं । पढमा हेहाहाणपरूवणा समत्ता ।
अणंतभागभहियाणं' कंडयवग्गं कंडयं च गंतूण संखेज्जभागब्भहियहाणं ॥ २२० ॥
एसा विदिया हेटाहाणपरूवणा किमहमागदा ? संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवडिअसंखेजगुणवड्डि-अणंतगुणवड्डीणं च हेहिमअणंतभागवड्डि-असंखेजभागवड्डि-संखेजभागवड्डि-संखेजगुणवड्डीणं पमाणपरूवणटुं। संखेन्जमागवड्डी उप्पजमाणा अणंतभागवड्डीणं कंदयवग्गं कंदयब्भहियं गंतूण चेव उप्पजदि १६, ण अण्णहा, विरोहादो। एदेसिमुप्पायण विहाणमणुवायादो उच्चदे । कोऽनुपातः १ त्रैराशिकम् । तं जहा--एक्किस्से असंखेज्जभागवड्डीए हेट्ठा जदि कंदयमेत्ताओ अणंतभागवड्डीयो लब्भंति तो रूवाहियकंदयमेताणमसंखेज्जभागवड्डीणं केत्तियाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए कंदयसहिदकंदयवग्गमेत्ताओ अणंतभागवड्डीयो लभंति । पुव्वं संखेज्जभागवड्डीदो हेढा
अनन्तगुणवृद्धि उत्पन्न होती हुई सब ही असंख्यातगुणवृद्धियोंके काण्डकको बिताकर ही उत्पन्न होती है, इसके बिना वह उत्पन्न नहीं होती; ऐसा समझना चाहिये । प्रथम अधस्तनस्थानप्ररूपणा समाप्त हुई।
अनन्तभाग अधिक अर्थात् अनन्तभागवृद्धियोंके काण्डकका वर्ग और एक काण्डक जाकर संख्यातभागवृद्धिका स्थान होता है।॥ २२० ॥
शंका-यह द्वितीय अधस्तनस्थानप्ररूपणा किस लिये प्राप्त हुई है ?
समाधान- वह संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि व अनन्तगुणवृद्धि इनके तथा नीचेकी अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि; इन वृद्धियोंके भी प्रमाण की प्ररूपणा करनेके लिये प्राप्त हुई है।
___ संख्यातभागवृद्धि उत्पन्न होती हुई अनन्तभागवृद्धियोंके एक काण्डकसे अधिक काण्डकके वर्गको विताकर ही उत्पन्न होती है (४४४+४), इसके बिना वह उत्पन्न नहीं होती; क्योंकि, उसमें विरोध है। इनके उत्पन्न करानेकी विधि अनुपातसे कहते हैं।
शंका-अनुपात किसे कहते हैं ? समाधा-त्रैराशिकको अनुपात कहते हैं। यथा-एक असंख्यातभागवृद्धिके नीचे यदि काण्डक प्रमाण अनन्तभागवृद्धियाँ
ती हैं तो एक अधिक काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धियोंके नीचे वे कितनी पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर काण्डक सहित काण्डकके वगै प्रमाण अनन्तभागवृद्धियाँ पायी जाती हैं
१ ताप्रती 'अणतभागभहियं' इति पाठः।
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