Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
२२०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २६७. सेण रचणं कादण तदो घादहाणपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एगेण जीवेण सव्वुक्कस्सेण घादपरिणामट्ठाणेण परिणमिय चरिमाणुभागबंधट्ठाणे घादिदे चरिमअणंतगुणवड्डिट्ठाणादो हेट्ठा अणंतगुणहीणं होदण तदणंतरहेट्ठिमउव्वंकादो अणंतगुणं होदूण दोणं पि विच्चाले अण्णं हदसमुप्पत्तियहाणं उप्पज्जदि । एदेण उक्कस्सविसोहिहाणेण धादिज्जमाणचरिमाणुभागबंधहाणं किं सव्वकालमटुंकुव्वंकाणं विच्चाले चेव पददि आहो कया वि बंधट्ठाणसमाणं होद्ण पददि त्ति ? अटुंकुव्वंकाणं विचाले चेव पददि, घादपरिणामेहिंतो उप्पज्जमाणस्स हाणस्स बंधट्ठाणसमाणत्तविरोहादो। जदि घादिज्जमाणमणुभागट्ठाणं णियमेण बंधट्ठाणसमाणो ण होदि तो एइंदिएसु सगुक्कस्सबंधादो उवरि लब्भमाण असंखेज्जलो. गमेत्तछट्ठाणधादे संतकम्मट्ठाणाणि चेव उप्पज्जेज्ज । ण च एवं, अणुभागस्स अणंतगुणहाणिं मोत्तण सेसहाणीणं तत्थाभावप्पसंगादो। जदि एवं तो क्खहि एवं घेत्तव्वं । घादपरिणामा दुविहा–संतकम्मट्ठाणणिबंधणा बंधट्ठाणणिबंधणा चेदि । तत्थ जे संतकम्मट्ठाणणिबंधणा परिणामा तेहितो' अटुंकुव्वंकाणं विचाले संतकम्मट्ठाणाणि चेव उप्पज्जंति, तत्थ अणंतगुणहाणिं मोत्तूण अण्णहाणीणमभावादो। जे बंधहाणणिबंधणा परिणामा तेहिंतो छबिहाए हाणीए बंधट्ठाणाणि चेव उप्पज्जंति, ण संतकम्मट्ठा
रचकर पश्चात् घातस्थानोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवके द्वारा सर्वोत्कृष्ट घातपरिणामस्थानसे परिणत होकर अन्तिम अनुभागबन्धस्थानके घाते जानेपर अन्तिम अनन्तगुणवृद्धिस्थानसे नीचे अनन्तगुण हीन होकर तदनन्तर अधस्तन ऊवंकसे अनन्तगुण होकर दोनोंके बीचमें अन्य हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होता है।
शंका-इस उत्कृष्ट विशुद्धिस्थानके द्वारा घाता जानेवाला अन्तिम अनुभागबन्धस्थान क्या सर्वदा अटांक और ऊर्वकके बीचमें ही पड़ता है या कदाचित् बन्धस्थानके समान होकर पड़ता है ?
समाधान-वह अष्टांक और ऊर्वकके बीचमें ही पड़ता है, क्योंकि, घातपरिणामोंसे उत्पन्न होनेवाले स्थानके बन्धस्थानके समान होनेका विरोध है।
शंका-यदि घाता जानेवाला अनुभागस्थान नियमसे बन्धस्थानके समान नहीं होता है तो एकेन्द्रियोंमें अपने उत्कृष्ट बन्धसे ऊपर पाये जानेवाले असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानोंका घात होनेपर सत्त्वस्थान ही उत्पन्न होने चाहिये । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि वैसा होनेपर अनुभागकी अनन्तगुणहनिको छोड़कर शेष हानियोंके वहाँ अभावका प्रसंग आता है।
___समाधान-यदि ऐसा है तो ऐसा ग्रहण करना चाहिए कि घातपरिणाम दो प्रकारके हैंसत्कर्मस्थाननिबन्धन घातपरिणाम और बन्धस्थाननिबन्धन घातपरिणाम । उनमें जो सत्कर्मस्थान निबन्धन परिणाम हैं उनसे अष्टांक और ऊर्वकके बीच में सत्कर्मस्थान ही उत्पन्न होते हैं, क्योंकि, वहाँ अनन्तगुणहानिको छोड़कर अन्य हानियोंका अभाव है । जो बन्धस्थाननिबन्धन परिणाम हैं उनसे छह प्रकारकी हानि द्वारा बन्धस्थान ही उत्पन्न होते हैं, न कि सत्कर्मथान; क्योंकि, ऐसा स्वभाव है।
१ अप्रतौ 'णिबंधणा परिणामेहितो' इति पाटः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org