Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २६७.] वेयणमहाहियारे वैयणभावविहाणे विदिया चूलिया . [२२७ ट्ठाणाणि तदियपरिवाडीए उप्पादेदव्वाणि । एवं तदियपरिवाडी गदा।
संपहि चउत्थपरिवाडी उच्चदे। तं जहा-तेणेव चरिमपरिणामेण पञ्जवसाणचदुचरिमउव्वंके धादिदे तदियपरिवाडीए उप्पण्णहदसमुप्पत्तियसव्व जहणट्ठाणस्स हेटा अणंतभागहीणं होदण अण्णमपुणरुत्तहाणमुप्पञ्जदि । एवमेत्थ वि परिणामट्ठाणमेत्ताणि चेव संतकम्मट्ठाणाणि उप्पादेदव्वाणि । एवं चउत्थपरिवाडी गदा।।
संपहि पंचमपरिवाडी उच्चदे । तं जहा–चरिमपरिणामेण पंचचरिमउव्वंके घादिदे चउत्थपरिव डीए उप्पण्णजहण्णट्ठाणस्स हेट्ठा अणंतभागहीणं होदण अण्णं ठाणं उप्पअदि । एवं दुचरिमादिपरिणामेहि तं चेव हाणं घादिय पंचमपडिवाडीए द्वाणाणमुप्पत्ती वत्तव्या । एवं सेसबंधट्ठाणाणि चरिमादिसवपरिणामेहि घादाविय ओदारेदव्वं जाव चरिमअहंके त्ति । एवमोदारिदे हाणाणं विक्खंभो छट्ठाणमेत्तो आयामो पुण विसोहिट्ठाणमेतो होदण चिट्ठदि । एवं उप्पण्णासेसट्टाणाणि अपुणरुत्ताणि चेव, सरिसत्तस्स कारणाणुवलंभादो । पढमपत्तीए पढमढाणादो विदियपंतीए विदियट्ठाणं सरिसं ति णासंकणिजं ? पढमपंतिपढमट्ठाणं रूवाहियसव्व जीवरासिणा खंडिय तत्थेगखंडेणूण विदियपंतिपढमट्ठाणमभवसिद्धिएहि अणंतगुण-सिद्धाणमणंतिमभागेण खंडिय तत्थेगखंडेणाहियस्स
इस प्रकार तृतीय परिपाटी समाप्त हुई।
अब चतुर्थ परिपाटीकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है - उसी अन्तिम परिणामके द्वारा पर्यवसान चतुश्चरम ऊर्वकका घात होनेपर तृतीय परिपाटीसे उत्पन्न हतसमुत्पत्तिक सर्वजघन्य स्थानके नीचे अनन्तवें भागसे हीन होकर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। इस प्रकारसे यहाँपर भी परिणामस्थानोंके बराबर ही सत्कर्मस्थानोंको उत्पम्न कराना चाहिये। इस प्रकार चतुर्थ परिपाटी समाप्त हुई।
अब पाँचवीं परिपाटीकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- अन्तिम परिणामके द्वारा पंचचरम ऊर्वकके घातनेपर चतुर्थ परिपाटीसे उत्पन्न जघन्य स्थानके नीचे अनन्तवें भागसे हीन होकर अन्य स्थान उत्पन्न होता है। इसी प्रकार द्विचरमादिक परिणामांके द्वारा उसी स्थानको घातकर पाँचवौं परिपाटीसे स्थानोंकी उत्पत्तिका कथन करना चाहिए । इस प्रकार चरम आदि सब परिणामोंके द्वारा शेष बन्धस्थानोंका घात कराकर अन्तिम अष्टांक प्राप्त होने तक उतारना चाहिये। इस प्रकारसे उतारनेपर स्थानोंका विष्कम्भ षट्स्थान प्रमाण और आयाम विशुद्धिस्थानोंके बराबर होकर स्थित होता है। इस प्रकारसे उत्पन्न हुए समस्त स्थान अपुनरुक्त ही होते हैं, क्योंकि, उनके समान होने का कोई कारण नहीं पाया जाता है। प्रथम पंक्तिके प्रथम स्थानसे द्वितीय पंक्तिका द्वितीय स्थान सहश है, ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, प्रथम पंक्तिके प्रथम स्थानको एक अधिक सब जीवराशिसे खण्डित कर उसमें एक खण्डसे हीन द्वितीय पंक्तिके प्रथम स्थानको अभव्योंसे अनन्तगुणे एवं सिद्धोंके अनन्तवें भागसे खण्डित कर उसमें एक खण्डसे अधिक द्वितीय
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