Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २६७. विदियपंतिविदियट्ठाणस्स सरिसत्तविरोहादो। एवं सवपंतिविदियट्ठाणाणमसरिसत्तं परूवेदव्वं, समाणजाइत्तादो । एदेहितो सयपंतिसव्वट्ठाणाणमसरिसत्तं तकणिज्जं'।
संपहि दुचरिमअट्ठकस्स हेट्ठा तदणंतरहेट्ठिमउव्वंकादो उवरिदोण्णं पि बंधट्ठाणाणं विच्चाले उप्पज्जमाणसंतढाणाणं परवणं कस्सामो। तं जहा-एगेण जीवेण एगछट्टाणेणूणउक्कस्साणुभागसंतकम्मिएण उकस्सपरिणामेण चरिमुव्बंके घादिदे दुचरिमअट्ठकस्स हेट्ठा अणंतगुणहीणं तस्सेव हेट्ठिमउव्वंकट्ठाणादो उवरि अणंतगुणं होदण अण्णं हदसमुप्पत्तियट्ठाणमुप्पजदि। पुणो दुचरिमपरिणामट्ठाणण तम्हि चेव चरिम उव्वंके घादिदे विदियमणंतभागवड्डिधादट्ठाणं उप्पञ्जदि । पुणो एत्थ वि पुरविहाणेण तिचरिमादिविसोहिट्ठाणेहि तं चेव चरिमउव्वकं घादिय परिणामट्ठाणमेत्ताणि चेव हदसमुप्पत्तियट्टाणाणि उप्पादेदव्वाणि । एवं चरिमबंधट्ठाणादो असंखेजलोगछट्ठाणमेत्ताणि रूवूणछट्ठाणसहिदहाणाणि उप्पण्णाणि । पुणो एदेसिं द्वाणाणं हेट्ठा परिणामट्ठाणमेत्ताणि हदसमुप्पत्तियहाणाणि उप्पजति । तं जहा-चरिमपरिणामेण दुचरिमबंधट्ठाणे घादिदे पुबिल्ल जहण्णट्ठाणादो हेट्ठा अणंतभागहीणं होदूण अण्णट्ठाणं उप्पजदि । पुणो दुचरिमपरिणामेण तम्हि चेव ढाणे घादिदे अणंतभागब्भहियं होदण अण्णं द्वाणमुपजदि । एवमणेण विहाणेण तिचरिमादिसम्बपरिणामट्ठाणेहि पुव्वं णिरुद्ध
पंक्ति सम्बन्धी द्वितीय स्थानके उससे सदृश होनेका विरोध है। इस प्रकार सब पंक्तियों सम्बन्धी द्वितीय स्थानोंकी असमानताका कथन करना चाहिये, क्योंकि वे सब एक जातिके हैं। इनसे सब पंक्तियों सम्बन्धी स्थानोंकी असमानताकी तर्कणा ( अनुमान ) करना चाहिये।
_ अब द्विचरम अष्टांकके नीचे और तदनन्तर अधस्तन अटांकके ऊपर दोनों ही बन्धस्थानों के मध्यमें उत्पन्न होनेवाले सत्त्वस्थानोंकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है एक षट्स्थानसे रहित उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मवाले एक जीवके द्वारा उत्कृष्ट परिणामके बलसे अन्तिम ऊवकके घाते जानेपर द्विचरम अष्टांकके नीचे अनन्तगुणा हीन और उसीके अधस्तन ऊर्वक स्थानसे ऊपर अनन्त. गुणा होकर अन्य हतसमुत्पत्तिक स्थान उत्पन्न होता है। फिर द्विचरम परिणामस्थानके द्वारा उसी अन्तिम ऊवकके घातेजानेपर द्वितीय अनन्त भागवृद्धिघातस्थान उत्पन्न होता है। फिर यहाँपर भी पूर्व विधानसे त्रिचरम आदि विशुद्धिस्थानोंके द्वारा उसो अन्तिम ऊर्वकको घातकर परिणामस्थानोंके बराबर ही हतसमुस्पत्तिक स्थानोंको उत्पन्न कराना चाहिये । इस प्रकार अन्तिम बन्धस्थ नसे असं. ख्यातलोक षट्स्थानप्रमाण एक कम षट्स्थान सहित स्थान उत्पन्न होते हैं ।
पुनः इन स्थानोंके नीचे परिणामस्थानों के बराबर हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होते हैं । यथा - अन्तिम परिणामके द्वारा द्विचरम बन्धस्थानके घाते जानेपर पूर्व जघन्य स्थानसे नीचे अनन्तभाग हीन होकर अन्य स्थान उत्पन्न होता है। फिर द्विचरम परिणामके द्वारा उसी स्थानके घाते जानेपर अनन्तवें भागसे अधिक होकर अन्य स्थान उत्पन्न होता है। इस प्रकार इस विधिसे त्रिचरम
१-अ-ताप्रत्योः 'तक्कणेज' इति पाठः ।
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