Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२६] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ४, २, ७, २६७. चेव कमो होदि, कारणाणुरूवकज्जुवलंभादो त्ति । तं जाणिय वत्तव्वं ।
पुणो चरिमपरिणामेण पज्जवसाणदुचरिम उबंके धादिदे हदसमुप्पत्तियसव्वजहण्णहाणस्स हेटा अणंतभागहीणं होदण अण्णमपुणरुत्तट्ठाणमुप्पजदि । एदं हाणं सबजीवरासिणा रूवाहिएण उवरिमट्टाणे खंडिदे तत्थ एगखंडेण हीणं होदि, समाणपरिणामेण घादिदत्तादो । पुणो दुचरिमपरिणामेण पज्जवसाणदुचरिमउव्वंके धादिदे पढमपरिवाडीए उप्पण्णहदसमुप्पत्तियसव्वजहण्णट्ठाणेण असरिसं होदूण विदियपरिवाडीए विदियं घादहाणं उप्पज्जदि । एदेसि दोण्णं हाणाणं असरिसत्तणेण च णव्वदे' जहा संतकम्मट्ठाणेसु परिणामेसु च सव्व जीवरासी चव भागहारोण होदि त्ति । पुणो तिचरमादिपरिणामट्ठाणेहि दुचरिमउव्वंके घादिजमाणे परिणामहाणमेत्ताणि चेव संतकम्मट्ठाणाणि लद्धाणि होति । ( एवं विदियपरिवाडी समत्ता)
संपहि तदियपरिवाडी उच्चदे । तं जहा-चरिमपरिणामेणेव पञ्जवसाणतिचरिमउव्वंके घादिदे विदियपरिवाडीए उप्पण्णहदसमुप्पत्तियसव्वजहण्णहाणस्स हेहा वामपासे अणंतभागहीणं होदूण अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं उप्पजदि । पुणो तेणेव दुचरिमपरिणामेण तिचरिमे उव्वंके घादिदे अण्णंढाणमुप्पजदि । एवं परिणामट्टाणमेत्ताणि चेव संतकम्मनहीं है । परिणामों के विषयमें भी यही क्रम है, क्योंकि, कारणके अनुसार ही कार्य पाया जाता है। उसका जान कर कथन करना चाहिए।
पुनः अन्तिम परिणाम के द्वारा पर्यवसान द्विचरम ऊर्वकके घाते जानेपर सर्वजघन्य हतसमुत्पत्तिकस्थानके नीचे अनन्तवें भागसे हीन होकर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। यह स्थान एक अधिक सब जीवराशिके द्वारा उपरिम स्थानको खण्डित करनेपर उसमें एक खण्डसे हीन होता है, क्योंकि वह समान परिणामके द्वारा घातको प्राप्त हुआ है। फिर द्विचरम परिणामके द्वारा पर्यवसान द्विचरम ऊर्वकके घाते जानेपर प्रथम परिपाटीसे उत्पन्न हतसमुत्पत्तिक सर्वजघन्य स्थानसे असमान होकर द्वितीय परिपाटीसे द्वितीय घातस्थान उत्पन्न होता है। इन दोनों स्थानोंके विसदृश होनेसे जाना जाता है कि सत्कर्मस्थानोंमें और परिणामों में सब जीवराशि ही भागहार नहीं होता है। पश्चात् त्रिचरमादिक परिणामस्थानोंके द्वारा द्विचरम ऊवकके घाते जानेपर परिणामस्थानोंके बराबर ही सत्त्वस्थान प्राप्त होते हैं । इस प्रकार द्वितीय परिपाटी समाप्त हुई।
अब तृतीय परीपाटीकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- अन्तिम परिणाम के द्वारा ही पर्यवसान चरम ऊवकके घाते जानेपर द्वितीय परिपाटीसे उत्पन्न हतसमुत्पत्तिक सर्वजघन्य स्थान के नीचे वाम पाश्वमें अनन्तवें भागसे हीन होकर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। फिर उसी द्विचरम परिणामके द्वारा त्रिचरम ऊवकके घाते जानेपर अन्य स्थान उत्पन्न होता है। इस प्रकार तृतीय परिपाटीसे परिणामस्थानांके बराबर ही सत्कर्मस्थानीको उत्पन्न कराना चाहिये।
१ताप्रतौ ‘णजदे' इति पाठः । २-अ-पाप्रस्योः अद्धाणि'; ताप्रती 'श्र (ल) द्धाणि' इति पाठः। ३-अ-याप्रत्योः 'उव्वंको' इति पाठः।
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