________________
२२२]
छक्खंडागमे वेयणाखंड - [४, २, ७, २६७. सरिसत्तं घडदे, विरोहादो । किं च बज्झमाणसमए चेव पदेसरचणाए विसेसहीणकमेण अवट्ठाणणियमो, ण सव्वकालं, ओकड्डुक्कड्डणाहि विसोहि'-संकिलेसवसेण वड्डमाणहीयमाणपदेसाणं णिसित्तसरूवेण अवहाणाभावादो।
संपहि एदं हदसमुप्पत्तियट्ठाणं एत्थ सबजहण्णं, उक्कस्सविसोहीए सव्वुक्कस्सविसेसपच्चयसहिदाए घादिदत्तादो। पुणो अण्णेग"जीवेण दुचरिमविसोहिट्ठाणेण उपरिमउव्वंके घादिदे अटुंकुव्वंकाणं दोणं पि विच्चाले पुन्चुप्पण्णट्ठाणस्सुवरि अणंतभागब्भहियं होदूण विदियं हदसमुप्पत्तियट्ठाणं उप्पज्जदि । एत्थ जहण्णहाणे केण भागहारेण भागे हिदे वड्डिपक्खेवो आगच्छदि ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणेण सिद्धाणमणंतभागेण भागहारेण जहपणट्ठाणे भागे हिदे पक्खेवो आगच्छदि । जहण्णट्ठाणं पडिरासिय तम्हि पक्खित्ते विदियमणंतभागवड्डिहाणं उप्पज्जदि । संपहि एत्थ सव्वजीवरासिमागहारं मोत्तण सिद्धाणमणंतिमभागे भागहारे कीरमाणे "अणंतभागपरिवड्डी काए परिवड्डीए ? सव्वजीवेहि ।" इच्चेदेण सुत्तण' कधं ण विरुज्झदे ? ण एस दोसो, बंधट्ठाणाणि अस्सिदण तं सुत्तं परविदं, ण संतढाणाणि, बंध-संतढाणाणमेगत्ताभावादो । बंधवड्डिक्कमेण एत्थ
उसमें विरोध है। दूसरे, बन्ध होनेके समयमें ही प्रदेशरचनाके विशेष हीनक्रमसे रहनेका नियम है, न कि सर्वदा; क्योंकि, विशुद्धि व संक्लेशके वश होकर अपकर्षण व उत्कर्षण द्वारा बढ़ने व घटनेवाले प्रदेशोंके निषिक्त स्वरूपसे रहनेका अभाव है।
___ अब यह हतसमुत्पत्तिकस्थान यहाँ सबसे जघन्य है, क्योंकि, सर्वोत्कृष्ट विशेष प्रत्ययोंसे सहित उत्कृष्ट विशुद्धि के द्वारा वह घातको प्राप्त हुआ है। फिर अन्य एक जीवके द्वारा द्विचरम विशुद्धिस्थानसे उपरिम ऊर्वंकके घातनेपर अष्टांक और ऊर्वक दोनोंके ही बीचमें पूर्वोत्पन्न स्थानके आगे अनन्तवें भागसे अधिक होकर दूसरा हतसमुत्पत्तिकस्थान उत्पन्न होता है।
शंका-यहाँ जघन्य स्थानमें किस भागहारका भाग देनेपर वृद्धिप्रक्षेप आता है ?
समाधान- अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र भागहारका जघन्य स्थानमें भाग देनेपर प्रक्षेपका प्रमाण आता है। जघन्यस्थानको प्रतिराशि करके उसमें उसे मिलानेपर द्वितीय अनन्तभागवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है।
शंका-अब यहाँ सब जीवराशि भागहारको छोड़कर सिद्धोंके अनन्तवें भागको भागहार करनेपर "अनन्तभागवृद्धि किस वृद्धिके द्वारा होती है ? वह सब जीवोंके द्वारा होती है।" इस सूत्रके साथ क्यों न विरोध आवेगा?
____ समाधान - यह कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि, उस सूत्रकी प्ररूपणा बन्धस्थानोंका आश्रय करके की गई है, सत्त्वस्थानोंका आश्रय करके नहीं की गई है। कारण कि बन्धस्थान और सत्त्वस्थानका एक होना सम्भव नहीं है।
१ प्रतिषु 'विहि' इति पाठः। २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-बा-ताप्रतिषु 'परूवेण' इति पाठः। ३ प्रतिषु "एवं' इति पाठः । ४ ताप्रतौ 'एत्थ सव्वजहण्णुकस्स-' इति पाठः । ५ अ-श्राप्रत्योः 'अणेण' इति पाठः।
६ भावविधान ११३-१४ इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org