Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२१८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २,७, २६५. एगरूवमवणिय सेससव्वखंडेहि गुणिदे संखेजभागवडिविसओ होदि । एदम्मि हेट्ठिमरा- . सिणा भागे हिदे लद्धसंखेजरूवाणि गुणगारो होदि ।
संखेजगुणब्भहियाणि हाणाणि संखेजगुणाणि ॥२६५॥
को गुणगारो ? संखेजरूवाणि । तं जहा-जहण्णपरित्तासंखेज्जछेदणयमेतदुगुणवड्डिअद्धाणेसु गदेसु पढममसंखेजगुणवड्डिहाणं उप्पजदि । दुगुणवड्डिअद्धाणाणि च सव्वाणि सरिसाणि त्ति एगं गुणहाणिअद्धाणं ठविय जहण्णपरित्तासंखेजछेदणेहि रूवूणेहि गुणिदे संखेजगुणवड्डिअद्धाणं होदि । तम्हि संखेजभागवड्डिअद्धाणेण भागे हिदे गुणगारो होदि।
असंखेजगुणब्भहियाणि हाणाणि असंखेजगुणाणि ॥२६६॥
एत्थ गुणगारो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो १. अणंतरोवणिधाए जा संखेज्जभागवड्डो तिस्से असंखेज्जे भागे संखेज्जगुणवड्डि-असंखेज्जगुणवड्डि विसयं सव्वमवरुधिय हिदत्तादो।
अणंतगुणब्भहियाणि हाणाणि असंखेजगुणाणि ॥२६७॥
एत्थ गुणगारो असंखेज्जलोगा। कुदो ? पढमअहंकप्पहुडि उवरिमअसंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणावहिदसव्वाणुभागबंधट्ठाणाणं जहण्णहाणादो अणंतगुणत्तुवलंमा । एवमएक अध्वानको स्थापित करके इकतालीस खण्डोंमेंसे एक अंक कम करके शेष सब खण्डोंके द्वारा गुणित करनेपर संख्यातभागवृद्धिका विषय होता है । इसमें अधस्तन राशिका भाग देने पर प्राप्त हुए संख्यात अंक गुणकार होते हैं।
उनसे संख्यातगुणवृद्धिस्थान संख्यातगुणे हैं ।। २६५ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात अंक हैं। यथा-जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेद प्रमाण दुगुणवृद्धिस्थानोंके वीतनेपर प्रथम संख्यातगुणवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है। दुगुणवृद्धिस्थान चूंकि सब सदृश हैं, अतएव एक गुणहानि अध्वानको स्थापित कर जघन्य परीतासंख्यातके एक कम अर्धच्छेदोंसे गुणित करनेपर संख्यातगुणवृद्धि अध्वान होता है। उसमें संख्यातभागवृद्धिअध्वानका भाग देनेपर गुणकारका प्रमाण होता है।
उनसे असंख्यातगुणवृद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २६६ ॥
यहाँ गुणकार अंगुलका असंख्यातवाँ भाग है, क्योंकि, अनन्तरोपनिधामें जो संख्यातभागवृद्धि है उसके असंख्यातवें भागमें संख्यागुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धिके सब विषयका अवरोध करके स्थित है।
उनसे अनन्तगुणवृद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २६७ ॥ ___ यहाँ गुणकार असंख्यात लोक हैं, क्योंकि, प्रथम अष्टांकसे लेकर आगेके असंख्यात लोक मात्र षस्थानोंमें अवस्थित समस्त अनुभागबन्धस्थान जघन्य स्थानसे अनन्तगुणे पाये जाते हैं।
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