Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२१०]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २४८. जहण्णेण एगसमओ ॥ २४८ ॥
एदाओ पंचवड्डि-हाणीयो एगसमयं चेव कादूण विदियसमए अणप्पिदवड्डि-हाणीसु गदे संते एगसमो लब्भदि ।
उक्कस्सेण आवलियाए असंखेजदिभागो ॥ २४६ ॥
पंचण्णं वड्डि-हाणीणं मझे जदि एक्किस्से बड्डीए हाणीए वा सुदु दीहकालमच्छदि तो आवलियाए असंखेजदिभागमेत्तं चेव अच्छदि, णो आवलियादिकंतं कालं', साभावियादो। अणंतभागवड्डिविसयं पेक्खिदूण असंखेजभागवड्डिविसओ अंगुलस्स असंखेज. दिभागगुणो' त्ति असंखेजभागवड्डिकालो असंखेजपलिदोवममेत्तो किण्ण जायदे ? ण, विसयगुणगारपडिभागेण अणुभागबंधकाले इच्छिञ्जमाणे अणंतगुणवड्डि-हाणीणमसंखेजलोगमेत्तबंधकालप्पसंगादो। ण च एवं, सुत्ते तासिमंतोमुहुत्तमेत्तउक्कस्सकालणिदेसादो ।
अणंतगुणवडि-हाणीयो केवचिरं कालादो होति ? || २५० ॥ सुगमं । जहण्णण एगसमओ॥ २५१ ॥ कुदो ? अणंतगुणवड्डिबंधमणंतगुणहाणिबंधं च एगसमयं कादूण विदियसमए जघन्यसे ये एक समय होती हैं ॥ २४८ ॥
इन पाँच वृद्धियों व हानियोंको एक समय ही करके द्वितीय समयमें अविवक्षित वृद्धियों व हानियोंके प्राप्त होनेपर इनका एक समय काल उपलब्ध होता है।
वे उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक होती हैं ॥ २४ ॥
पाँच वृद्धियों व हानियों के मध्यमें यदि एक वृद्धि अथवा हानिमें अतिशय दीर्घ काल तक रहता है तो वह आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र ही रहता है, आवलीका अतिक्रमण कर वह अधिक काल तक नहीं रहता, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है।
शंका - अनन्तभागवृद्धिके विषयकी अपेक्षा असंख्यातभागवृद्धिका विषय चूंकि अंगुलके असंख्यातवें भागसे गुणित है, अतएव असंख्यातभागवृद्धिका काल असंख्यात पल्योपम प्रमाण क्यों नहीं होता है ?
___ समाधान-नहीं, क्योंकि विषयगुणकारके प्रतिभागसे अनुभागबन्धके कालको स्वीकार करनेपर अनन्तभागवृद्धि व हानि सम्बन्धी बन्धकालके असंख्यात लोक मात्र होनेका प्रसंग आता है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, सूत्र में उनके उत्कृष्ट कालका निर्देश अन्तर्मुहूते मात्र काल ही किया है।
अनन्तगुणवृद्धि और हानि कितने काल तक होती हैं ? ॥२५०॥ यह सूत्र सुगम है। जघन्यसे एक समय तक होती हैं ॥ २५१ ॥ कारण कि अनन्तगुणवृद्धिबन्ध और अनन्तगुणहानिबन्धको एक समय करके द्वितीय समय१ प्रतिषु 'श्रावलियादिकालं' इति पाठः। २ आप्रतौ 'असंखे० भागमेत्तगुणो' इति पाठः।
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