Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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- ४, २, ७, २५९. ] . वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [२१५
एत्थ गुणगारो रूवाहियकंदयं । कुदो ? कंदयमेत्तछांकाणि गंतूण एगसत्तंकुप्पत्तीदो । जदि कंदयमेत्ताणि संखेजगुणवड्डिहाणाणि गंतूण एगमसंखेजगुणवड्डिहाणमुप्पजदि तो एगं चेव कंदयं गुणगारो होदि, ण रूवाहियकंदयं; एगछट्ठाणम्मि कंदयमेत्ताणं चेव असंखेजगुणवड्डीणमुवलंभादो ? ण एस दोसो, कंदयमेत्ताणि असंखेजगुणवड्डिट्ठाणाणि उप्पन्जिय अण्णेगमसंखेजगुणवड्डिहाणं होहिदि त्ति अहोदूण जेण पढमछट्ठाणं द्विदं तेण अण्णेगासंखेजगुणवड्डीए अभावे वि तदो हेट्ठिमकंदयमेत्तसंखेजगुणवड्डीयो लभंति । तेण रूवाहियकंदयं गुणगारो । एदं कारणं उवरि सव्वत्थ वत्तव्यं । एत्थ एदेसिमाणयणविहाणं उच्चदे-एगअसंखेजगुणबड्डीए जदि कंदयमेत्ताओ संखेजगुणवड्डीयो लभंति तो रूवाहियकंदयमेत्ताणमसंखेजगुणवड्डीणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणि दिच्छाए ओवट्टिदाए एगछट्ठाणभंतरसंखेजगुणवड्डिट्ठाणाणि उप्पजंति । एदेसु कंदयमेत्तअसंखेजगुणवड्डिठ्ठाणेहि ओवट्ठिदेसु रूवाहियकंदयमे त गुणगारो होदि ।
संखेज्जभागभहियाणि हाणाणि असंखेजगुणाणि ॥ २५६ ॥
को गुणगारो ? रूवाहियकंदयं । तं जहा-रूवाहियकंदयगुणिदकंदयमेत्त'संखेजगुणवड्डीसु | ४ | ५ | रूवाहियकंदएण गुणिदासु एगछटाणमंतरसंखेज्जभागवड्डिहाणाणि
यहाँ गणकार एक अंकसे अधिक काण्डक है, क्योंकि, काण्डक प्रमाण छह अंक जाकर एक सात अंक उत्पन्न होता है।
शंका-काण्डक प्रमाण संख्यातगुणवृद्धिस्थान जाकर एक असंख्यातगुणवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है तो एक ही काण्डक गुणकार होता है, न कि एक अंकसे अधिक काण्डक, क्योंकि, एक षट्स्थानमें काण्डक प्रमाण ही असंख्यातगुणवृद्धियां पायी जाती हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, काण्डक प्रमाण असंख्यातगुणवृद्धिस्थान उत्पन्न होकर अन्य एक असंख्यातगणवृद्धिस्थान होगा, ऐसा न होकर चूंकि प्रथम षट्स्थान स्थित है अतएव अन्य एक असंख्यातगणवृद्धिका अभाव होनेपर भी उससे नीचेके काण्डक प्रमाण संख्यात गुणवृद्धियां पायी जाती हैं। इस कारण एक अंकसे अधिक काण्डक गुणकार होता है। यह कारण आगे सब जगह बतलाना चाहिये।
यहां इनके लानेकी विधि बतलाते हैं -एक असंख्यातगुणवृद्धिके यदि काण्डक प्रमाण संख्यातगुणवृद्धियां पायी जाती हैं तो एक अधिक काण्डक प्रमाण असंख्यातगुणवृद्धियोंके वे कितनी पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक षस्थानके भीतर संख्यातगणवृद्धिस्थान उत्पन्न होते हैं। इनको काण्डक प्रमाण असंख्यातगणवृद्धिस्थानोंके द्वारा अपवर्तित करनेपर एक अधिक काण्डक प्रमाण गुणकार होता है।
उनसे. संख्यातभागवृद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ।। २५९ ॥
गुणकार क्या है ? गुणक र एक अंकसे अधिक काण्डक है । वह इस प्रकारसे-एक अधिक काण्डकसे गुणित काण्डक (४४५) प्रमाण संख्यातगुणवृद्धियोंको एक अधिक काण्डके
१ अ-अाप्रत्योः 'मेत्ते', ताप्रतौ 'मेचे ()।
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