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अनंत गुणस्स हेट्ठदो असंखेज्जभागव्भहियाणं कंदयवग्गावग्गो ६४ तिष्णिकंदयघणा तिष्णिकंदयवग्गा कंदयं च ॥ २२८ ॥
२, ७, २२८. ]
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एसिमंकाणमुपत्ती भण्णमाणाए पुव्वं व चत्तव्यं, विसेसाभावादी । एवं चउत्थी हाणपरूवणा समत्ता ।
वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
अनंत गुणस्स दो अनंतभागग्भहियाणं कंदयो 'पंचहदो चत्तारिकंदयवग्गावग्गा छकंदयघणा चत्तारिकंदयवग्गा कंदयं च ॥ २२६ ॥
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छ. १२-२६.
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एदेसिमंकाणमुप्पत्तिविहाणं बुच्चदे । तं जहा - कंदयवग्गावग्गं तिष्णि कंदयघणे अनन्तगुणवृद्धि के नीचे असंख्यात भागवृद्धियों का एक काण्डकवर्गावर्ग, तीन काण्डकघन, तीन काण्डकवर्ग और एक काण्डक होता [ (४४१६) + (४°<३)+ (४३) x ४ ] है || २२८ ॥
इन अंकों की उत्पत्तिका कथन करते समय पहिले के समान प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि समें कोई विशेषता नहीं है । इस प्रकार चतुर्थी अधस्तनस्थानप्ररूपणा समाप्त हुई ।
अनन्तगुणवृद्धिके नीचे अनन्तभागवृद्धियोंका पाँच वार गुणित काण्डक, चार काण्डकवर्गावर्ग, छह काण्डकघन, चार काण्डकवर्ग और एक काण्डक [ ( ४ × ४× ४× ४× ४) + (४ × ४ × १६ × ४ ) + (४ ×६) + (४'×४)+४] होता है ।। २२६ ॥
इन अंकों के उत्पादनकी विधि कही जाती है । वह इस प्रकार है
प्रतौ 'कंदयपंचहदो' श्रापतौ 'कंदयपंचद्ददो' इति पाठः ।
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- एक काण्डक वर्गावर्ग, तीन
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