SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २०१ | २५६ ६४ अनंत गुणस्स हेट्ठदो असंखेज्जभागव्भहियाणं कंदयवग्गावग्गो ६४ तिष्णिकंदयघणा तिष्णिकंदयवग्गा कंदयं च ॥ २२८ ॥ २, ७, २२८. ] १६ १६ १६ ४ एसिमंकाणमुपत्ती भण्णमाणाए पुव्वं व चत्तव्यं, विसेसाभावादी । एवं चउत्थी हाणपरूवणा समत्ता । वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया अनंत गुणस्स दो अनंतभागग्भहियाणं कंदयो 'पंचहदो चत्तारिकंदयवग्गावग्गा छकंदयघणा चत्तारिकंदयवग्गा कंदयं च ॥ २२६ ॥ १ छ. १२-२६. Jain Education International एदेसिमंकाणमुप्पत्तिविहाणं बुच्चदे । तं जहा - कंदयवग्गावग्गं तिष्णि कंदयघणे अनन्तगुणवृद्धि के नीचे असंख्यात भागवृद्धियों का एक काण्डकवर्गावर्ग, तीन काण्डकघन, तीन काण्डकवर्ग और एक काण्डक होता [ (४४१६) + (४°<३)+ (४३) x ४ ] है || २२८ ॥ इन अंकों की उत्पत्तिका कथन करते समय पहिले के समान प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि समें कोई विशेषता नहीं है । इस प्रकार चतुर्थी अधस्तनस्थानप्ररूपणा समाप्त हुई । अनन्तगुणवृद्धिके नीचे अनन्तभागवृद्धियोंका पाँच वार गुणित काण्डक, चार काण्डकवर्गावर्ग, छह काण्डकघन, चार काण्डकवर्ग और एक काण्डक [ ( ४ × ४× ४× ४× ४) + (४ × ४ × १६ × ४ ) + (४ ×६) + (४'×४)+४] होता है ।। २२६ ॥ इन अंकों के उत्पादनकी विधि कही जाती है । वह इस प्रकार है प्रतौ 'कंदयपंचहदो' श्रापतौ 'कंदयपंचद्ददो' इति पाठः । १०२४ २५६ For Private & Personal Use Only २५६ २५६ २५६ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ १६ १६ १६ १६ ४ - एक काण्डक वर्गावर्ग, तीन www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy