SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४,२, ७, २३०. तिष्णिकंदयवग्गे कंदयं च दोसु द्वाणेसु द्वविय जहाकमेण रूवेण कंदएण' च गुणिय मेलाविदे कंदओ पंचहदो चत्तारिकंदयवग्गावग्गा छकंदयघणा चत्तारिकंदयवग्गा कंदयं च उपजदि । एवं पंचमी हेद्वाद्वाणपरूवणा समत्ता । समयपरूवणदाए चदुसमइयाणि अणुभागबंधज्भवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जा लोगा ॥ २३०॥ संतपरूवणमकाऊण पमाणप्पा हुआ णं चेत्र परूवणा किमहं कीरदे ? ण एस दोसो, एदेहि दोहि अणियोगद्दारेहि अवगदेहि तदवगमादो | ण च संतरहियाणं पमाणं थोवबहुत्तं च संभव, विरोहादो। अधवा, अविभागपडिच्छेद परूवणादिअणियोगद्दारेहि चेव अणुभागबंधट्टाणाणं कालविसेसिदाणं तस्स परूवणा कदा, एगसमयादिकालेण अविसेसिदाणं संतस्स गगणकुसुमसमाणत्तप्पसंगादो | | जहण्णाणुभागबंधद्वाणपहुडि जाव उकस्साणुभागबंधट्ठाणे त्ति एदेसिमसंखेज लोग मेत्ताण मणुभागबंधद्वाणाणं पण्णाए एगपतीए आयारेण रचणाए कदाए तत्थ हेहिमाणि असंखेजलोगमेत्तअणुभागबंधद्वाणाणि चदुसमइयाणि । एगसमयमादिं काढूण उक्कस्सेण णिरंतरं चत्तारिसमयं बज्झतित्ति भणिदं होदि । उवरि किण्ण बज्यंति १ सभावियादो । कडकनों, तीन काण्डक वर्गों और एक काण्डकको दो स्थानों में स्थापित करके क्रमशः एक अंक और काण्डक द्वारा गुणित करके मिलानेपर पाँचवार गुणित काण्डक, चार काण्डकवर्गावर्ग, छह काण्डघन, चार काण्डकवर्ग और एक काण्डक उत्पन्न होता है । इस प्रकार पंचम अधस्तनस्थान प्ररूपणा समाप्त हुई । समयप्ररूपणा में चार समयवाले अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं || २३० ॥ शंका-सत्प्ररूपणा न करके प्रमाण और अल्पबहुत्व की ही प्ररूपणा किसलिये की जा रही है । समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इन दो अनुयोगद्वारोंके अवगत हो जानेपर उनके द्वारा सत्प्ररूपणा का अवगम हो जाता है। कारण कि सत्त्वसे रहित पदार्थों का प्रमाण और अल्पबहुत्व सम्भव नहीं है, क्योंकि, उसमें विरोध है । अथवा, अविभागप्रतिच्छेद आदि अनुयोगद्वारोंके द्वारा ही कालसे विशेषित अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंके सत्त्वकी प्ररूपणा की जा चुकी है, क्योंकि, एक समय आदि कालकी विशेषता से रहित उनके सत्व के आकाशकुसुमके समान होने का प्रसंग आता है जघन्य अनुभागबन्धस्थान से लेकर उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थानतक इन असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धस्थानोंकी बुद्धिसे एक पंक्तिके आकार से रचना करनेपर उनमेंसे नीचे के असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धस्थान चार समयवाले हैं । अभिप्राय यह है कि ये स्थान एक समय से लेकर उत्कर्षसे निरन्तर चार समयतक बंधते हैं । शंका- चार समय से आगे वे क्यों नहीं बँधते हैं ? १ - श्रापत्योः 'जहाकमेण रूपेण रूवेण कंदएण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy