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४, २, ७, २४१. ]
वेयणमहाहिमारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
अवयवाणमेत्थ अणुवहिभावेण एदस्स असंपुण्णत्ताणुववत्तीदो । विसमइयाणि अणभागबंधज्झवसाणद्वाणाणि असंखेजगुणाणि ॥ २४१॥
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एत्थ उवरिसो अणुवट्टदे | अथवा अत्थावत्तीए चेव उवरितं णव्वदे । सेसं सुगमं । एदं चैव सुत्तमणुभागबंध ज्झवसाणहाणाणं पि जोजेयव्वं, विसेसाभावादो । अणुभागबंधट्टाणाणं परूवणाए अणुभागबंधज्झवसाणडाणाण परूवणा किमहं कीरदे ? ण, अणुभागबंधहाणाणि सहेउआणि णिरहेउआणि ण होंति त्ति जाणावणडं तक्कारणपरू
करदे | अणुभागहाणप डिबद्धत्तादो' अणुभागबंधज्भवसाणद्वाणपरूवणासंबद्धा ति ? अणुभागबंधकवसाणट्ठाणा विभाग * पडिच्छेदाणमणतत्तं कत्तो णव्वदे" १ तकजकम्मपरमाणूणम विभागपडिच्छेदस्स आणंतियण्णहाणुववत्तीदो । अणुभागट्टाणाणं संखामाहपाणावण पुव्युत्तप्पाबहुअस्स सव्वपदेसु अवट्ठिदकमेण तेउकाइयकाय हिदी चैव गुणगारो होदित्ति जाणावणां च उत्तरसुत्तं भणदि
समाधान- नहीं, क्योंकि, आगे के सूत्रके अवयवोंकी यहाँ अनुवृत्ति होनेसे इस सूत्र की अपूर्णता घटित नहीं होती ।
दो समय योग्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान उससे असंख्यातगुणे हैं ॥ २४९ ॥ यहाँ 'उपरि' शब्दकी अनुवृत्ति आती है । अथवा, अर्थापत्तिसे ही उपरित्वका ज्ञान हो जाता है। शेष कथन सुगम है। इसी सूत्रकी योजना अनुभागबन्धस्थानोंकी भी करनी चाहिये, क्योंकि, उनमें कोई विशेषता नहीं है ।
शंका- अनुभागबन्धस्थानोंकी प्ररूपणा में अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंकी प्ररूपणा किसलिये की जा रही है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, अनुभागबन्धस्थान सहेतुक हैं, निर्हेतुक नहीं हैं; इस बातका ज्ञान कराने के लिये उनके कारणोंकी प्ररूपणा की जा रही है। अनुभागस्थानोंसे सम्बद्ध होने के कारण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंकी प्ररूपणा असंबद्ध भी नहीं है ।
शंका- अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंके अविभागप्रतिच्छेदों की अनन्तता कहाँ से जानी
जाती है ?
समाधान -- उनके कार्यभूत कर्मपरमाणुओं के अविभाग प्रतिच्छेदोंकी अनन्तता चूँकि उसके विना बन नहीं सकती है, अतएव इसीसे उनकी अनन्तता सिद्ध है ।
अनुभागस्थानोंकी संख्याका माहात्म्य जतलाने के लिये तथा पूर्वोक्त अल्पबहुत्वका गुणकार सब पदोंमें अवस्थित क्रमसे तेककायिक जीवोंकी कायस्थिति ही होती है, इस बातको भी जतलाने के लिये आगेका सून्न कहते हैं ।
१ अप्रतौ अणुमत्थिभावेण प्रतौ 'अणुभागमत्थिभावेण ताप्रतौ श्रणुमत्थि [ वत्ति ] भावेण ' इति पाठः । २ अ श्राप्रत्योः ‘- द्वाणाणि ', ताप्रतौ "डाणाणि ( णं )' इति पाठः । ३ ताप्रतौ 'कीरदे, अणुभागबंधद्वाणपढिबद्धत्तादो ।' इति पाठः । ४ आता प्रत्योः 'हाणं विभाग - ' इति पाठः । ५ ताप्रतौ'- मणतत्तं ( १ ) कत्तो णव्वदे इति पाठः ।
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