Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१९४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २१६. च सुहुमसांपराइयगुणहाणम्हि छव्विहाए वड्डीए बंधो अस्थि, विरोहादो। पुणो कत्तो प्पहुडि एसा हेट्टाहाणपरूवणा कीरदे ? सुहुमेइंदियजहण्णहाणप्पहुडि कीरदे । एदम्हादो हेट्ठिमट्ठाणेसु एगं हाणं णिभिय परूवणा किण्ण कीरदे ? ण, हेहा एदम्हादो ऊणसंतहाणामावादो। चरिमसमयखीणकसायस्स संतहाणप्पहुडि परूवणा किण्ण कीरदे ? ण, तत्तो प्पहुडि हाणाण छविहबड्डीए अभावादो । जेणेदं सुत्तं देसामासियं तेण अणंतभागब्भहियहाणाणं कंदयं गंतूण संखेजभागवड्डी संखेजगुणवड्डी असंखेजगुणवड्डी अणंतगणबड्डी च उप्पजदि त्ति घेत्तव्यं' । संखेजभागवड्डिहाणणिरुंभणं काऊण हेट्ठिमहाणपरूवण उवरिमसुत्तं भणदि
असंखेजभागभहियं कंदयं गंतूण संखेज्जभागभहियं हाण॥२१६॥
कंदयमेत्ताणि असंखेजभागभहियहाणाणि जाव ण गदाणि ताव णिच्छएण संखेअभागवड्डिट्ठाणं ण उप्पजदि त्ति भणिदं होदि । असंखेजभागवड्डीणं विच्चालेसु अणंतहै । परन्तु सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानमें छह प्रकारको वृद्धिसे बन्ध नहीं होता, क्योंकि, उसमें विरोध है।
शंका-तो फिर कौनसे जघन्य स्थानसे लेकर यह अधस्तनस्थानप्ररूपणा की जा रही है ? समाधान-वह सूक्ष्म एकेन्द्रियके जघन्य स्थानसे लेकर की जा रही है।
शंका-इससे नीचेके स्थानोंमेंसे एक स्थानकी विवक्षाकर वह प्ररूपणा क्यों नहीं की जाती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, नीचे इससे हीन सत्त्वस्थानका अभाव है।
शंका-अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषायके सत्त्वस्थानसे लेकर उक्त प्ररूपणा क्यों नहीं की जाती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उस स्थानसे लेकर जो स्थान हैं उनके छह प्रकार की वृद्धि सम्भव नहीं है।
यह सूत्र चूँकि देशामर्शक है अतएव अनन्तवें भागसे अधिक स्थानोंका काण्डक जाकर संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि उत्पन्न होती है ऐसा ग्रहण करना चाहिये। अब संख्यातभागवृद्धिस्थानकी विवक्षा करके अधस्तन स्थानोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं -
__असंख्यानवें भागसे अधिक काण्डक जाकर संख्यातवें भागसे अधिक स्थान होता है ।। २१६ ॥ _असंख्यातवें भागसे अधिक काण्डक प्रमाण स्थान जबतक नहीं बीतते हैं तबतक निश्चयसे संख्यातभागवृद्धिका स्थान नहीं उत्पन्न होता है, यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है।
१ अा-ताप्रत्योः 'वत्तव्वं' इति पाठः ।
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