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४, २, ७, २१४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [ १८७ यामक्खेत्तं होदि । एत्थ सत्तखंडमेत्तपक्खेवा लभंति, छप्पण्णखंडमेत्तपिसुलेहि एगपक्खेवुप्पत्तीदो। पुणो एदे सत्तखंडमेत्तपक्खेवे घेत्तण एगूणवंचासखंडमेत्तपक्खेवेसु पक्खित्तेसु उक्कस्ससंखेजमेत्तसगलपक्खेवा होंति, छप्पण्णखंडमेत्तपक्खेवेहि उक्कस्ससंखेअमेत्तपक्खेवुप्पत्तीदो। एदेहि सव्वेहि पक्खेवेहि एगं जहण्णहाणं होदि । तम्मि 'तिसु जहण्णहाणेसु पक्खित्ते चदुगुणवड्डी होदि।
पुणो पुव्वमवणिदछब्भागविक्खंभएगूणवंचासखंडायामक्खेत्ते समकरणं करिय पक्खित्ते सादिरेयचदुग्गुणवड्डिट्ठाणं होदि। सेसपिसुलापिसुलाणं पि जाणिय पक्खेवो कायव्यो। संपहि इगिदालदुभाग-तिभागादिसु पक्खेवखंडाणि णावट्ठिदसरूवेण गच्छंति, तहाणुवलंभादो। कुदो पुण पक्खेवपमाणमवगम्मदे ? ईहादो। तत्थ संदिही
४५ २३| ३ १६| ३ |१२२ १०२८ ११७१।६।१६।११५] १।४।१।।
४/३/१०/२ ३/३४
०.९१०/१०/११११ १ /४/२/३/३/३ |३|३/२/२/२/२२२ २२२२११११११
०१३१०७ ४११७१५१३११९७५३१२७१६२५२४ १२१३१४१५ १६:१७ ८१९२०/२१/२२२३२४/२५२६२७२८२९३०३१
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एसा संदिही पिसुलाणि चेव अस्सिदृणुप्पण्णदुगुणवड्डीणमद्धाणपरूवणटुं इविदा, पिसुलापिसुलेहि विणा दुगुणत्तुवलंभादो।
ऊपर रखनेपर सात खण्ड विष्कम्म और छप्पन खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है। इसमें सात खण्ड मात्र प्रक्षेप पाये जाते हैं, क्योंकि, छप्पन खण्ड मात्र पिशुलोंसे एक प्रक्षेप उत्पन्न होता है । फिर इन सात खण्ड प्रमाण प्रक्षेपोंको ग्रहणकर उनचास खण्ड मात्र प्रक्षेपोंमें मिलानेपर उत्कृष्ट संख्यात मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं, क्योंकि, छप्पन खण्ड मात्र प्रक्षेपोंसे उत्कृष्ट संख्यात मात्र प्रक्षेप उत्पन्न होते हैं। इन सब प्रक्षेपोंसे एक जघन्य स्थान होता है। उसे तीन जघन्य स्थानोंमें मिलानेपर चतुर्गुणी वृद्धि होती है।
फिर पहिले अलग किये गये छठे भाग [ सहित एक खण्ड ] विष्कम्भ और उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको समीकरण करके मिलानेपर साधिक चौगुणी वृद्धिका स्थान होता है । शेष पिशुलापिशुलोंका भी जानकर प्रक्षेप करना चाहिये। अब इकतालीस द्वितीय भाग और तृतीय भागादिकों में प्रक्षेपखण्ड अवस्थित स्वरूपसे नहीं जाते हैं, क्योंकि, वैसे पाये नहीं जाते हैं।
शंका-फिर प्रक्षेपोंका प्रमाण कैसे जाना जाता है ? समाधान-वह ईहासे जाना जाता है।
यहाँ संदृष्टि-(मूलमें देखिये)। यह संदृष्टि पिशुलोंका ही आश्रय करके उत्पन्न दुगुणवृद्धियोंके अध्वानकी प्ररूपणा करनेके लिये स्थापित की गई है, क्योंकि, पिशुलापिशुलोंके बिना दुगुणापन पाया नहीं जाता।
१ ताप्रतौ 'दि (ति) सु' इति पाठः।
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