Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१६.]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४,२,७, २१४. असंखेज्जभागवड्डीए विसो । तं जहा-एकिस्से असंखेज्जभागवड्डीए जदि रूवाहियकंदयमेत्तात्री असंखेज्जभागवड्डीओ लब्भंति तो कंदयमेत्तासु असंखेज्जभागवड्डीसु केत्तियाओ लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए कंदयसहिदकंदयवग्गमेत्तो असंखेजभागवड्डिविसओ होदि ।
___ संपहि संखेज्जभागवड्डिविसयस्स पमाणपरूवणा कीरदे । तं जहा-रूवाहिय'कंदएण एगकंदए गुणिदे दोणं संखेज्जभागवड्डीणं अंतरं होदि । पुणो तत्थ पढमसंखेजभागवड्डिट्ठाणे पक्खित्ते रूवाहियमंतरं होदि । पुणो एकसंखेजभागवड्डीए जदि एत्तियो संखेजभागवड्डिविसओ लब्भदि तो उक्कस्ससंखेचं छप्पण्णखंडाणि कादण तत्थ इगिदालखंडेसु जत्तियाणि रूवाणि तत्तियासु संखेजभागवड्डीसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए संखेजभागवड्डिविसो होदि ।
संपहि संखेज्जगुणवड्डिविसयस्स पमाणपरूवणं कस्सामो। तं जहा-पुन्विल्लसंखेज्जभागवड्डिविसयं ठविय तेरासियकमेण जहण्णपरित्तासंखेज्जयस्स अद्धछेदणएहि रूवूणएहि सव्व गुणहाणिअद्धाणाणि सरिसाणि त्ति गुणिदे संखेज्जगुणवड्डिविसयो होदि ।
संपहि असंखेज्जगुणवड्डिविसयप्पमाणपरूवणं कस्सामो। तं जहा-संखेज्जभागवड्डि विसओ अणंतरोवणिधाए अंगुलस्स असंखेज्जदि,भागमेत्तो। एदस्स असंखेज
यथा-एक असंख्यातभागवृद्धिमें यदि एक अधिक काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धियाँ पायी जाती हैं तो काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धियों में वे कितनी पायी जावेंगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक काण्डकके साथ काएडकके वर्ग मात्र असंख्यातभागवृद्धिका विषय होता है।
अब संख्यातभागवृद्धिके विषयप्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है--एक अधिक काण्डकसे एक काण्डकको गुणित करनेपर दोनों संख्यातभागवृद्धियोंका अन्तर होता है। फिर उसमें प्रथमसंख्यातभागवृद्धिके स्थानको मिलानेपर एक अंकसे अधिक अन्तर होता है। अब एक संख्यातभागवृद्धिमें यदि संख्यातभागवृद्धिविषयक इतना अन्तर पाया जाता है तो उत्कृष्ट संख्यातके छप्पन खण्ड करके उनमेंसे इकतालीस खण्डोंमें जितने अंक है उतनी मात्र संख्यातभागवृद्वियोमें वह कितना पाया जावेगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर संख्यातभागवृद्धिका विषय होता है।
__ अब संख्यातगुणवृद्धिके विषयप्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- पूर्वोक्त संख्यातभागवृद्धिके विषयको स्थापित करके त्रैराशिक क्रमसे जघन्य परीतासंख्यातके एक अंकसे हीन अर्धच्छेदोंसे सब गुणहानिअध्वानोंको सदृश होनेके कारण गुणित करनेपर संख्यातगुणवृद्धिका विषय होता है।
__ अब असंख्यातगुणवृद्धिके विषयप्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-संख्यातभागवृद्धिका विषय अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा अंगलके असंख्यातवें भाग मात्र है। इसके असंख्या
१ ताप्रतौ 'दुरूवाहिय' इति पाठः । १ अप्रतौ 'रूवूणसव्व' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org