Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४,२, ७, २१४.
संपहि एत्थ एगकंदयमेत्तसंखेज्जभागवड्डीसु पण्णाए पुध काढूण एगपंतियागारेण ठविदासु सव्वगुणहाणीणमद्भाणं सरिसं चेव, गुणहाणिअद्धाणाणं विसरिसत्तस्स कारणावलंभादो | ण ताव गुणहाणिं पडि पक्खेवपिसुलादीणं दुगुणत्तं गुणहाणीणं विसरिसतस कारणं, गुणहाणि पडि दुगुण- दुगुणपक्खेवक साउद यहाणगुणहाणीणं पि विसरिसत्तभुवमादो | ण च पक्खेवाणं गुणहाणिं पडि दुगुणत्तणेण विणा गुणहाणीणमवद्विदत्तं संभव, अण्णासि तवड्ढि -हाणीणं तेण विरोहुवलंभादो । ण च एत्थ पक्खेवादीणं दुगुणचमसिद्धं, अवद्विदभागहारेण दुगुण- दुगुणविहज्जमाणरासीसु ओगट्टिज्जमाणासु विहज्ज - मारा सिपडि भागबाहल्लस्सुवलंभादो छप्पण्णोवट्टिदउकस्स संखेज्जस्स इगिदालसाणं दुभाग-तिभागादिसु संकलिदेसु गुणहाणिअद्धाणस्स णावद्विदत्तमुवलंभदि त्तिणासंकणिजं, तेसु वि संकलिदेसु पढमगुणहाणिपमाणेणेव उप्पज्जेयब्वं, पढमगुणहाणिपक्खेवादी हिंतो दुगु विदियगुणहाणिपक्खेवादिसु संतेसु विदियगुणहाणीए श्रद्धाणस्स 'विसरिसत्तविरोहादो । पच्चक्खेण गुणहाणीणं सरिसत्तं बाहिञ्जदि ति णासंकणिज्जं, खंडाणं पक्खेव
अब यहाँ एक काण्डक प्रमाण संख्यात भागवृद्धियोंको बुद्धिसे पृथक् करके एक पंक्तिके आकारसे स्थापित करनेपर सब गुणहानियोंका अध्वान समान ही रहता है, क्योंकि, गुणहानियों के अध्वानोंके असमान होनेका कोई कारण नहीं पाया जाता । यदि कहा जाय कि प्रत्येक गुणहानिमें प्रक्षेप व पिशुलादिकोंकी दुगुणता गुणहानियोंकी असमानताका कारण है, सो यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि, प्रत्येक गुणहानि में दूने दूने प्रक्षेप, कषायोदयस्थान और गुणहानियोंकी भी असमानता स्वीकार की गई है । प्रत्येक गुणहानिमें प्रक्षेपोंके दूने होनेके बिना गुणहानियोंका अवस्थित रहना सम्भव भी नहीं है, क्योंकि, उससे अन्य उक्त वृद्धि-हानियों का विरोध पाया जाता है । दूसरे, यहाँ प्रक्षेप आदिकों का दूना होना असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, अवस्थित भागहारके द्वारा दूनी दूनी विभज्यमान राशियोंको अपवर्तित करनेपर विभज्यमान राशि मात्र प्रतिभाग बाहल्या पाया जाता है ।
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शंका- छप्पनसे अपवर्तित उत्कृष्ट संख्यातके इकतालीस अंशोंके द्वितीय व तृतीय भागादिकों के संकलनों में गुणहानिअध्वान अवस्थित नहीं पाया जाता है ?
समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, उन संकलनोंको भी प्रथम गुणहानि के प्रमाणसे ही उत्पन्न होना चाहिये, क्योंकि, प्रथम गुणहानि सम्बन्धी प्रक्षेपादिकों से द्वितीय गुणहानि सम्बन्धी प्रक्षेपादिकोंके दूने होनेपर द्वितीय गुणहानि सम्बन्धी अध्वानके विसदृश होने का विरोध है ।
शंका गुणहानियों की सदृशता तो प्रत्यक्ष से बाधित है ?
समाधान - यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि, खण्डों के प्रक्षेपोंका विधान चूँकि अन्यथा
१ ताप्रतौ 'विसरिसत्त-' इति पाठः ।
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