Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २१४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१८५ पक्खिचे तिगुणवड्डिहाणं उप्पजदि। संपहि एगासीदिखंडेसु गहिदेस सेसखेत्तमेगखंडविक्खंभं तेरसखंडायाम एगखंडतिण्णिचदुब्मागविक्खंभसचेतालीसखंडायामखेचें च अधियं होदि । एदाणि दो वि खेत्ताणि एकदो करिय तिगुणहाणम्मि पक्खिचे सादिरेयतिगुणवड्डिहाण मुप्पज्जदि। तेणेसा परूवणा थलत्था ।
जदि थूलत्था, किमहं उच्चदे ? अव्वुप्पण्णजणवुप्पायणटुं । अथवा, इगिदालदुभागस्सुवरि सादिरेयदोखंडेसु पक्खिोसु तिगुणवड्डिअद्धाणं होदि, तत्थतणपिसुलापिसुलेसु दुरूवणगच्छतिभागगुणिदरूवणगच्छसंकलणमेचेसु पक्खिचेसु तिगुणहाणुप्पत्तीदो)
संपहि तिगुणवड्डीए उवरि इगिदालखंडतिभाग किंचूणतिखंडाहियं गंतूण चदुगुणवड्डी उप्पज्जदि । केत्तिएणणाणं तिण्णं खंडाणं पक्खेवो कीरदे ? एगखंडतिभागेण ऊणाणं पक्खेवो कीरदे । चडिदद्धाणखंडपमाणमेदं | १६ |
पुणो एत्तियमेत्तखंडायाम-विक्खंभेण तिण्णिपिसुलबाहल्लेण तिकोणंहोदण पिसुलखेतपागच्छदि । एत्थ पक्खेवा पुण तिगुणचडिदद्वाण मेत्ता लब्भंति । किमटुं पक्खोवाणं तिगुण कीरदे ? ण एस दोसो,तिसु जहण्णहाणेसु उक्कस्ससंखेज्जेण खंडिज्जमाणेसुतिण्णं पक्खेवाणमस्थानमें दुगुणवृद्धिस्थानको मिलानेपर त्रिगुणवृद्धिका स्थान उत्पन्न होता है । अब इक्यासी खण्डोंके ग्रहण करनेपर शेष क्षेत्र एक खण्ड विष्कम्भ और तेरह खण्ड आयाम युक्त तथा एक खण्डके तीन चतुर्थ भाग विष्कम्भ और सैतालीस खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र अधिक होता है। इन दोनों ही क्षेत्रोंको इकट्ठा करके त्रिगुणवृद्धिस्थानमें मिलानेपर साधिक त्रिगुणवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है। इस कारण यह स्थूलार्थ प्ररूपणा है।
शंका-यदि यह प्ररूपणा स्थूलार्थ है तो उसका कथन किसलिये किया जा रहा है ? समाधान-उसका कथन अव्युत्पन्न जनोंको व्युत्पन्न करानेके लिये किया जा रहा है।
अथवा, इकतालीस खण्डके द्वितीय भागके ऊपर साधिक दो खण्डोंके मिलानेपर त्रिगणवृद्धिका अध्वान होता है, क्योंकि, दो कम गच्छके तृतीय भागसे गुणित एक कम गच्छके संकलन प्रमाण वहाँ के पिशुलापिशुलोंको मिलानेपर तिगुणी वृद्धिका स्थान उत्पन्न होता है।
अब त्रिगुण वृद्धिके ऊपर कुछ कम तीन खण्डोंसे अधिक इकतालीस खण्डके तृतीय भाग प्रमाण जाकर चौगुणी वृद्धि उत्पन्न होती है।
शंका-कितने मात्रसे हीन तीन खण्डों का प्रक्षेप किया जाता है ? समाधान - एक खण्डके तृतीय भागसे हीन तीन खपडोंका प्रक्षेप किया जाता है।
गत अध्वानखण्डोंका प्रमाण यह है-१६। फिर इतने मात्र खण्ड आयाम व विष्कम्भ तथा तीन पिशुल बाहल्यसे त्रिकोण होकर पिशुलक्षेत्र आता है। परन्तु यहाँ प्रक्षेप गत अध्वानसे तिगुणे मात्र पाये जाते हैं।।
शंका-प्रक्षेपोंको तिगुणा किसलिये किया जाता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, तीन जघन्य स्थानोंको उत्कृष्ट सख्यातसे खण्डित करनेपर एक साथ तीन प्रक्षेपोंकी उत्पत्ति देखी जाती है।
छ. १२-२४,
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