Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१३६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ७, २०४. अभवसिद्धिएहि अणंतगुणेहि एगपक्खेवणिप्फत्तीदो । ण फद्दयाणि छिजंति, सबजीवेहि सिद्धहितो अणंतगुणहीणजहण्णहाणफद्दएसु छिज्जमाणेसु एगफद्दयस्स अणंतिमभागाणमुवलंभादो। ण च जहणणहाणजहण्णफद्दयाणि अणंताणि आगच्छंति त्ति पक्खेवागमो वोत्त सकिञ्जदे, जहण्णहाणचरिमफद्दयसरिसेहि अणंतेहि फदएहि पक्खेवणिष्फत्तीदो । ण च जहण्ण हाणम्हि सव्यजीवेहिंतो अणंतगुणाणि फद्दयाणि अस्थि जेण सव्वजीवरासिणा भागे हिदे अणंताणि फद्दयाणि आगच्छेज । जहण्णहाणफद्दयाणि परमाणू च सिद्धाणमणंतभागमेत्ता चेव इत्ति एदं कुदो णव्वदे ? सबढाणपरमाणू फद्दयाणि वि सिद्धाण मणंतभागमेत्ताणि चेव इत्ति जिणोवदेसादो। ण जिणो चप्पल प्रो, तक्कारणाभावादो। ण वग्गणाओ छिजंति, तासु वि छिज्जमाणासु एगवग्गणाए अणंतिमभागस्स आगमुवलंभादो । ण एगवग्गणाए अणंतिमभागेण पक्खेवो णिप्फजदि, अणंताहि वग्गणाहि णिप्फजमाणस्स एक्किस्से वग्गणाए अणंतिमभागेण णिप्फत्ति विरोहादो। ण च वग्गणाओ सव्वजीवेहि अणंतगुणाओ जेण सव्वजीवराणिसा जहण्णहाणवग्गणासु ओवट्टिदासु अणंतगुणाओ वग्गणाओ श्रागच्छेज्ज । सव्वाओ वि वग्गणाओ सिद्धाणमणंतभागमेत्ताओ, एगफद्दयवग्गणसलागाओ ठविय जहण्णहाणफद्दयसलागाहि गुणिदे सिद्धाणमणंतभागमे
अनन्तगुणे अनन्त परमाणुओंके द्वारा एक प्रक्षेप उत्पन्न होता है। सब जीवों द्वारा स्पर्द्धक भी नहीं खण्डित किये जा सकते, क्योंकि, सिद्धोंसे अनन्तगुणे हीन जघन्य स्थानके स्पर्द्धकोंको सब जीवों द्वारा खण्डित करनेपर एक स्पकके अनन्तवें भागका आना पाया जाता है। परन्तु जघन्य स्थान सम्बन्धी जघन्य स्पर्द्धक अनन्त नहीं आते हैं। इसीलिये उक्त रीतिसे प्रक्षेपका आना बतलाना शक्य नहीं है, क्योंकि, जघन्य स्थान सम्बन्धी अन्तिम स्पर्द्धकके सदृश अनन्त स्पर्द्धककोंसे प्रक्षेपकी उत्पत्ति होती है। और जघन्य स्थानमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्पर्द्धक हैं नहीं जिससे कि उनमें सब जीवराशिका भाग देनेपर अनन्त स्पर्द्धक आ सकें। जघन्य स्थानके स्पर्द्धक और परमाणु सिद्धों के अनन्तवें भाग मात्र ही हैं, यह कहांसे जाना जाता है ? स्थानोंके परमाणु और स्पर्द्धक भी सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र ही है, ऐसा जो जिन भगवान का उपदेश है उसीसे वह जाना जाता है। यदि कहा जाय कि जिन भगवान असत्यवक्ता हैं सो यह सम्भव नहीं है, क्योंकि, उनके असत्यवक्ता होनेका कोई कारण नहीं है। वर्गणायें भी सब जीवराशिके द्वारा खण्डित नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि, उनके भी खण्डित किये जानेपर एक वर्गणाके अनन्तवें भागका आगमन पाया जाता है। और एक वर्गणाके अनन्तवें भागसे प्रक्षेप उत्पन्न होता नहीं है, क्योंकि, जो प्रक्षेप अनन्त वर्गणाओं द्वारा उत्पन्न होनेवाला है उसकी एक वर्गणाके अनन्तवें भागसे उत्पत्तिका विरोध है ।
और वर्गणायें सब जीवोंसे अनन्तगुणी हैं नहीं, जिससे कि सब जीवराशि द्वारा जघन्य स्थानकी वर्गणाओंको अपवर्तित करनेपर अनन्तगुणी वर्गणायें आ सकें। सभी वर्गणायें सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र हैं, क्योंकि, एक स्पर्द्धककी वर्गणाशलाकाओंको स्थापित करके जघन्य स्थानकी स्पर्द्धक• शलाकाओंसे गुणित करनेपर सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र राशि उत्पन्न होती है। इनके संयोगसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org